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सहज कौ अंग]
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सन्दर्भ――ज्ञानी पुरुष के लिए भी विषय वासना का परित्याग आवश्यक है।

भावार्थ――ज्ञानी व्यक्ति निडर हो जाता है उसे किसी प्रकार की शंका नहीं रहती है और वह निशंक होकर इंद्रियो के भोगो को भोगता रहता है किन्तु वह ज्ञानी ही कैसा? जो इन्द्रियों के भोगो को भोगे। उसे तो उससे अलग हो रहना चाहिए।

शब्दार्थ―शंक= शंका।

ग्यानी मूल गॅवाइया, आपण भया करता।
ताथैं संसारी भला, मन में रहै डरता॥२७॥४०४॥

सन्दर्भ――अपने आचरण के प्रति सचेष्ट रहने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ है।

भावार्थ――ज्ञानी व्यक्ति अपने को संसार का कर्त्ता मानकर मूल सपत्ति भी गंवा देता है आत्म तत्व को पहचान नहीं पाता है। उससे अच्छे तो वे सांसारिक मनुष्य है जो अपने मन मे ईश्वर से डरते रहते हैं कि कही प्रभु उस पर क्रुद्ध न हो जाय और इस डर से वह कुकर्म नहीं करता है।

शब्दार्थ=ताथैं=उससे।

 

 

२१. सहज कौ अङ्ग

सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हें कोइ।
जिन सहजैं विषिया तजी, सहज कहीजै सोइ॥१॥

सन्दर्भ――निष्काम भक्त विषय वासना का परित्याग कर देते हैं।

भावार्थ――प्रत्येक मनुष्य ईश्वर प्राप्ति के मार्ग सहज (आसान) ही कहता है किन्तु उस सहज को कोई जानता नही है। परमात्मा को कोई नही जान पाता है। जो सरलतापूर्वक विषय वासनाओ का परित्याग कर देते हैं उन्ही को सरल एवं निष्काम भक्त कहना चाहिए।

शब्दार्थ――चीन्हैं=जानना।

विशेष――पुनरुक्ति अलंकार।

सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हें कोइ।
पाँचू राखै परसती, सहज कही जै सोइ॥२॥