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[कबीर की साखी
 

 

काइथि कागद काढ़िया, तब लेखै वार न पार।
जब लग सांस सरीर में, तब लग रांम सँभार॥४॥

सन्दर्भ――जीवन रहते ही पापो के नाश हेतु राम नाम का जप करते रहना चाहिए।

भावार्थ―मरणोपरान्त परमात्मा के दरबार मे जिस समय चित्र गुप्त तेरे कर्मों का हिसाब-किताब लगाकर देखेगा उस समय तेरे कुकर्मों का कोई वारपार होगा। नरक भोगना अवश्यंभावी हो जावेगा। इसलिए हे जीव! जब तक तेरे शरीर मे प्राण हैं तब तक सच्चे हृदय से राम नाम को अवश्य स्मरण कर जिससे पाप नष्ट हो जायें।

शव्दार्थ――सास=प्राण।

यहु सब झूठी बंदिगी, बरियां पांच निवाज।
साचै मारै झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज॥५॥

सन्दर्भ――परमात्मा एक और सर्वव्यापक है।

भावार्थ—―कबीरदास जी कहते हैं कि मुसलमानो का पाँच वार नमाज पढना और परमात्मा की प्रार्थना करना सब व्यर्थं है क्योकि तू उन कुरान की आयतो पर स्वयं तो आचरण करता नहीं है और इस प्रकार कितना बड़ा अनर्थं करता है।

शब्दार्थ――बंदिगी=अर्चना, पूजा। बरिया पंच=पाँच बार।

कबीर काजी स्वादि बसि, ब्रह्म हतै तब दोइ।
चढ़ि मसीति एकै कहै, दरि क्यूँ साँचा होइ॥६॥

सन्दर्भ――ईश्वर और जीव एकही हैं उनमे कोई भेद नहीं है।

भावार्थ――कबीरदास जी कहते हैं कि काजी जिस समय अपनी जिह्वा के स्वाद हेतु बकरे का हनन करता है तो वह यही समझकर मारता है कि ब्रह्म और जीव दोनो अलग हैं यद्यपि वास्तव मे वह बकरा भी ब्रह्म ही है किन्तु मसजिद मे खड़े होकर जिस समय वह यह कहने लगता है कि अल्लाह एक है उस समय उसकी बात को सत्य कैसे माना जा सकता है?

शब्दार्थ――मसीति=मसजिद।

काजी मुल्ला भ्रमियां, चल्या दुनीं कै साथि।
दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथि॥७॥

सन्दर्भ――धर्म का जीव हिंसा से कोई सम्बन्ध नही है।

भावार्थ――कबीरदास जी कहते हैं कि काजी और मुल्ला जो धार्मिक गुरु