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य्रन्थावली ] [ ६४७
कहती है कि हे प्रभु | अव देर मत कीजिए |मुझको अपना समझकर अब शीघ्र ही दशॆन दीजिए| अलंकार- (।) उदाहरण-जौसें ****कलपै| (॥) गूढोत्तकि-क्यूँ सचुपावै| विशेष-पत्नी के रूप मे ईश्वर प्रेम का वर्णन है| जीवात्मा दाम्पत्य विरह का अनुभव करती है| यह रह्स्यवादी भक्ति की व्यजना है| तुलना कीजिए- कब की बैठी जोवती,वाट तिहारी राम| जिय तरसै तुव मिलन कूँ, मन नाहीं विश्राम| -कबीर अबहूँ मया दिस्टि करि,नाह न्ठिुर! घ्रर आउ| मन्दिर उजार होत है नव कै आइ वसाउ| -जायसी पिया बिनु नागिन कारी रात| X X X मन्त्र न फुरै जन्त्र नहिं लागे आपु सिरानी जात| सूर स्याम बितु बिकल बिरहिनी मुरि मुरि करवट खात| -सूरदास घडी एक नहिं आवड़ै, तुम दरसण बिनु मोइ| तुम हो मेरे प्राण जो, कासूँ जीवण होइ| X X X धान न भावै नींद न आवै, विरह सतावै मोइ| घायल सी घूमत फिरूँ, दरद न जाणै कोइ|
पथ निहारूँ, डगर बुहारूँ, ऊभी म॰ रग जोइ| मिरौ के प्रभु कबरे मिलोगे, तुम मिलियाँ लुख होइ| -मीरौबाई (२२५) सो मेरा रांम कबै घ्ररि आवै, ता देखें मेरा जिय सुख पावै|| टेक|| बिरह अगिनि तन दिया जराई, बिन दरसन क्यूँ होइ सराई| निस बासुर मन रहै उदासा, जैसे चातिग नीर पियासा|| कहै कबीर अति आतुरताई, हमकौं बेगि मिलौ राम राई|| शब्दार्थ-सराई=शीतल| सदर्भ-पूव छ्न्द (२२४) के समान| भावार्थ-विरहविकला जीवात्मा कहती है कि 'हे मेरे पति राम, मेरे घर कब आओगे? जिससे आपके दशन करके मेरा ह्र्द्य सुख प्राप्त करे|विरह रूपी अग्नि ने मेरे शरीर को जला दिया है|आपके दशन रूपी जल के बिना वह किस प्रकार शीतलता(शाति) का अनुभव कर सकता है? जिस प्रकार चातक स्वाति|