पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३३९

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३५८ ] [ कबीर

मे सहायक होती है। यही पति के साथ उसका सामजस्य है और इसी से साधक जीव के जीवन मे समन्वय म्थापित हो जाता है ।

   (v)ज्ञानोदय की दशा का बहुत ही सुन्दर चित्रण है ।
   (vi)इस पद मे कबीर के व्यक्तिगत पारिवारिक जीवान की छाया है । 

कबीर की दो स्त्रियाँ थी , पहली का नाम लोई था, जो कुरूप थी । दूसरी स्वरूपवान और सुलक्षणा थी। इसका नाम घनिया था जिसे लोग रमजनिया कहते थे। कबीर इसके प्रति बडे अनुरक्त थे। सन्त-साध्य मे उपलब्ध गृहस्थ जीवन सम्बन्धी कबीर की ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं - मेरी बहुरिया को घनिया नाउ। लैराख्यो रमजनियाँ नाउ । तथा - हम तुम बीच् भयौ नहि कोई । तुमहिं सुकंत नारि हम सोई । कहत कबीर सुनहु रे लोई । अब तुमरी परतीति न होई ।

              (२३०)

मेरी मति बौरी रांम बिसारयौ, किहि विधि रहति रहूँ हो दयाल । सेजै रहूँ नैन नहीं देखाँ , यहु दुख कासो कहूँ हो दयाल ॥ टेक॥ सासु की दुखी ससुर की प्यारी, जेठ के तरसि डरो रे नणद सहेली गरब गहेली, देवर के बिरह जरौ हो दयाल ॥ वाप सावकी करे लराई माया सद मतिवाली । सगी भईया ले सलि चढिहूँ, तव ह्वो हूँ पीयाहि पियारी ॥ सोचि विचारि देखी मन मांहीं, औसर आई बन्यू रे । कहे कबीर सुनहु मति सुंदरि, राजा रांम रमू रे ॥


  शब्दार्थ- गहेली=ग्रस्त । सगी भईया- सहज वाघा । मलि= चिता ।
  संदर्भ- कबीर कहते हे कि इस जीवन की सार्थकता यही हे कि राम के प्रति प्रेम किया जाय ।
  

भावार्थ - विपयासक्ति के काराण मेरी बुध्दि पागल हो गई है,(ठिकाने नहीं रही है)और इस कारण मेरे पति राम ने मुझको भुला दिया है । हे दयालु प्रभु मे अपाना जीवन किस प्रकार व्यतीत करू ? मैं मदेव अपने पति ईश्वरा कि शेय्या पर हो ?? है परन्तु फिर भी उस ईश्वर रूपि पति को आखों से नही देख पाती हूँ ।