पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्रन्थावली ]

          तीरथ बरात जपै तप करी करी, बहुत हरी सोधे ।
          सकती सुहाग कही क्यू पावे, अछता कत विरोधे ।
          नारी परिष वसै इउ सगा, दिन दिन जाइ अवोलै । 
          तजि  भिमान मिलै नही पीव कूं, ढुढत बन बन डोलै ॥
          प्रेम प्रीति बेधी अंतर गती, कहू काहि को मांनै ॥
       शब्दार्थ- सोधै=खोजे । गती=महीमा । सुहागा=सौभाग्य ।
       संदर्भ- कबीर ज्ञान द्शा का वर्ण करते है ।
       भावार्थ- राम की महीमा का रहस्य कोई नही पाता है । लोग अपवने स्वरूप से अभित्र प्रभू रूपी चिन्तामणि (मनचाही वस्तुएँ देने वाणी मणि) को छोड कर इधर-उधर विभित्र साधनाओ एवं सिद्धियो मे भटकते रहते है और इस प्रकार अपनी विवेक-बुदी भी खो देते है, तीर्थ, व्रत, जप-तप आदि करते हुए लोगो ने भगवान को बहुत प्रकार से खोज, (परन्तु उन्हे भगवान की प्राप्ती नही हुई)। कोई नारी अपने पति का विरोध करते हुए भला पति-मिलन सोभग्य-सुख क्यो कर प्राप्त कर सकती है? जो स्त्री और पुरुष साथ-साथ रहते हुए आपस मे बिन बोले ही समय व्यतीत करते है, उनके जीवन मे आनन्द कहाँ से आसकता है? व्यजना यह है कि जो जीवात्मा अपने पति परमात्मा के साथ निरन्तर रहते हुए भि उससे प्रमुख रहतीह है उस आत्मा सुन्दरी को प्रमानन्द और परमानन्द की प्राप्ती किस प्रकार हो सकती है? यस जीवात्मा उस नारी के समान है जो मान वश प्रियतम से विमुख रहती है और प्रेमानन्द की प्राप्ति के लिए इधर-उधर चारो ओर मारी-मारी फिरती है। यह जीवात्मा अपने पृथकत्व क्र भाव को त्याग कर परमात्मा मे अपने अस्तित्व को तो मिलती नही है और आत्मानन्द की प्राप्त के मिए जगतो मे जाकर तपस्या आदी करती है। कबीर कहते है कि भगवान के प्रेम की महीमा वर्णनातीत है। इसके महत्व को कोई बिरला ही जान पाता है। मेरा अंत करण उस प्रेम-प्रीति द्वारा बिध्द हो गया है। इस अनुभूति का वर्णन मे किससे करू और कोन इस पर विशवास करेगा।
      अलंकार-(१)सम्बन्धतिश्योक्ति-राम'कोई।
            (२)रूपक-व्यतामणि प्रभु।
            (३)पुनरुक्ति प्रकाश- त्र मि त्र मि, करी करी, दिन दिन,वन वन
            (४)वत्रोक्ति-सकती '   वत्रोक्ति-सकति'  विरोधं। को मानं।
            (५)विदर्शना-सकती' डोलं।
            (६)विरोधाभम-अकथ कथा।
            (७)गूढोक्ति-कहं काहि।
            (८)रूपकातिशयोक्ति-नारी, पुरुष।