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ग्रन्यावली ] [ ७८ १

ब्रह्म से भिन्न प्रतीत होता है । माया ही विद्या, पाठ और पुराण है । यह व्यर्थ का वाचिक ज्ञान भी माया ही है । पूजा करने के साधन पत्रादिक तथा पूज्य देव-माया ही हैं । माया रूप पुजारी माया रूप देवता की सेवा करता है । माया ही नाचती है और माया ही गाती है । माया ही अनन्त भेषो में अपने आपको प्रदशित करती है । माया के बारे में कहाँ तक कहूँ और उसके कितने रूपों का वर्णन करू" ? दान, पुण्य, तप, तीर्थ आदि जितने जो कुछ हैं, सब माया ही हैं । कबीर कहते हैं कि किसी विरले को ही माया सम्बन्धी यह बोध होता है । और वही माया का परित्याग करके माया रहित तत्तव (निरजन) मे लीन होता है (उसके प्रति अनुरक्त होता है) ।

अलंकार-उल्लेख माया का विभिन्न रूपी से वर्णन है ।

विशेष-प्रकारान्तर से शाकर अद्दैत के मायावाद का प्रतिपादन है । जो कुछ भी अभिघेय है, वह सब माया है । उससे अतीत एव केवल अनुभूति गम्य ही निरज़न तत्त्व है ।

                    ( ३३७ )
        अजंन अलप निरज़न सार,
               यहै चीन्हि नर करहु विचार ।।टेक ॥
        अंजन उतपति बरतनि लोई, बिना निरंजन मुक्ति न होई ।।
        अंजन आवै अंजनि जाइ निरजन सब घट रह्यो समाइ ।।
        जोग घ्यांन तप सबै विकार, कहै कबीर मेरे रांम अधार ॥

शब्दार्थ-अजन=माया, दृश्यमान जगत । बरतनि=चवरतना, व्यवहार करना ।

सन्दर्भ- कबीर कहते हैं कि माया रूप जगत मिथ्या है । केवल माया रहित तत्त्व ही सार तत्त्व है ।

भावार्थ-माया अथवा माया जनित जगत अल्प एव मिथ्या है । निरज़न (ब्रहा) भूमा एव सार तत्व है । रे मानव, यह समझकर चिन्तन करो अथवा इस प्रकार विवेक पूर्वक ब्रह्य को जानने के लिए चिन्तन करो । लोग माया के द्वारा ही उत्पन्न होते हैं और माया-जनित ससार से ही व्यवहार करते हैं । निरचन के प्रति अनुरक्त हुए विना मुक्ति नहीं होती है अथवा निरचन अवस्था में अवस्थित हुए बिना मोक्ष नही होती है । माया ही जन्म लेती है और माया ही मरती है अर्थात् यह आवागमन तो माया का ही है । यह माया रहित निरचन ही समस्त अन्त करणो में कूटस्थ रूप से अवस्थित है । जोग, ध्यान, तप आदि सब माया के ही विकार हैं । कबीर कहते हैं कि पाया रहित राम ही मेरे आधार है अर्थात् उस परम तत्त्व की अनुभूति ही मेरा एक मात्र साधन और साध्य है । अलंकार-अनुप्रास-अ' की आवृति होने के कारण ।

विशेष--(१) शाकर अद्दैत का प्रतिपादन है । 'व्रह्य-सत्य जगन्मिथ्या' का सरल शैली में प्रतिपादन है ।