पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५२४

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पहुप पुरांने भए सूक,तब भवरहि लागी अधिक भूख ॥

     उडचो न चाइ बल गयो है छूटि, तव भवरी रूनी सीस फूटि ॥
     दह दिसि जोवै मधुप राइ, तब भवरी ले चली सिर चढाइ ॥
     कहै कबीर मन कौ सुभाव,रांम भगति बिन जम कौ डाव ॥
      शन्दार्थ-भ्रमर=मन । भृमरी=विवेक-वुध्दि । सुरग=सुन्दर रग ।

वनस्पति वन । रूनी= रोई । डाव= भय ।

       सन्दर्भ- कबीर का कहना है कि अन्तत राम भक्ति ही जीवन की सार्थकता है ।
       भावार्थ- विवेक-बुद्धि रूपी भ्रमरी स सार की विषय-वासनाओ से दुखी एव उदास होकर कहती है कि रे मन-रूपी भ्रमर,तुम भगवान के चरण कमलो के प्रति अनुरक्त बनो । तमने अनेक विपय रूपी पुरूषो का रस भोगा है । उससे तुमको कुछ भी सुख प्राप्त नही हुआ,अपितु मोह-रूप रोग की वृध्दि हुई है। यह चात तुमसे बार-बार कह चुकी हूँ। इस ससार रूपी वन की डाल-डाल पर मैंने आनद की खोज की,(लेकिन सब व्यर्थ)। ये विषय रूपी सुन्दर रग के फूल के ही हैं। इन्हे देखकर तू क्यो मोहित हो रहा है? इस ससार रूपी जगल मे आग लग जाएगी।

तब तुम अपने प्राणो के रक्षार्थ कहाँ भाग कर जाओगे? (तब भी तुम्हे भगवान की शरण मे ही जाना पडेगा।) परन्तु भ्रमर ने भ्रमरी की बात नही मानी। कुछ दिनो पश्चात् फूल पुराने पड कर सूख गये (विषय की सामर्थ्य क्षीण हो गई),तब भ्रमर रूपी मन को ईश्वर-प्रेम की भूख जोर के साथ लगी। परन्तु इस समय उसका शरीर इतना हीनवीर्य हो गया था कि उससे उडा ही नही जाता था। उसकी यह दशा देख कर बुध्दि रूपी भ्रमरी सिर पीट-पीट कर रोने लगी। मन रूपी भ्रमर भी अपने किए पर पश्चाताप करता हुआ दसो दिशाओ मे घूम घूम कर रोने लगा। तब भ्रमरी उसको अपने सिर पर चढाकर भगवान के चरणरविन्द के पास ले गई। कबीर कहते हैं कि मन रूपी भ्रमर का यह सहज स्वभाव है कि जब तक उसको भगवान के चरण-कमलों का सान्निध्य प्राप्त नही होता है, तब तक मृत्यु भय से उसकी मुक्ति नही होती है।

     अलंकार-(१)रूपकानतिशयोक्ति-भवरा,भवरी,पुहूप,वन।
            (२)साग रूपक-सम्पूर्ण पद।
            (३)वीप्सा-चलि चलि रे।
            (४)विशेषोक्ति-तै सुख न भयो।
            (५)विरोघाभास-भयो तब रोग,पुहुप पराने'' भूख।
            (६)पुनरुक्ति प्रकाश-बार बार, डार-डार।
            (७)गूढोक्ति-कहा भूल।
  विशेष-(१)इस पद मे वृध्दि-मनस और काम मनम के द्वन्द्व का सुन्दर वर्णन है। अन्तत वृध्दि मनस की विजय होती है और काम मनस का बुध्दि मनस मे