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[कबीर
 

'जगम जोग बिचारै जहूवां जीव सीव करि एकै ठऊवां ||

चित चेतनि करि पूजा लावा,तेतौ जंगम नांउं कहावा ||

जोगी भसम करै भो भारी,सहज गहै बिचार बिचारी ||

अनभै घट परचा सू बोलै,सो जोगी निहचल कदे न डोलै || जैन जीव का करहु उबारा,कौण जीव का करहु उधारा ||

कहां बसै चौरासी का देव,लहौ मुकति जे जाभवे ||

भगता तिरण मतै संसारी,तिरण तत ते लेहु बिचारी ||

प्रीति जांनि राँम जे कहै,दास नांउ सो भगता लहै ||

पंडित चारि बेद गुण गावा,आदि अंति करि पुत कहावा ||

उतपति परूलै कहौ बिचारी,संसा घालौ सबै निवारी ||

अरधक उरधक ये संन्यासो,ते सब तागी रहै अबिनासी ||

अजरावर कौं डिढ करि गहै,सो संन्यासी उन्मत रहै ||

जिहि घर चाल रचो ब्र्ह्मांड,प्रथमों मारि करी नव खडा ||

अबिगत पुरिस की गति लखी न जाइ,दास कबीर अगह रहे ल्य लाई ||

शब्दाथं-- काया=शरीर मे स्थित चंतन्या काजी=विचारक मुस्ल्ला वह दरी जिस पर नमाज पढी जाती है । सरवत्तरि=सवंत्र ।सेष=शेख=मुसलमानो की एक श्रेष्ठ जाती । आनी उतरा=अपने आप को अवसथीत कर देता है। सीब= शिवत्व । अनभं=अभय । आदिअता=व्रह्याअरधक-उरधक=नीच-ऊँच । अजरावर= अजर-अमर । उन्मन=समाघि की अवस्था । अगह=अगम्य ।

सन्दर्भ-कबीरदास समस्त धर्मावलम्बियो को,विशेषकर मुसलमानो को, बाहरी पाखण्ड छोडकर परम तत्व मे प्रतिष्ठित होने का उपदेश देते है |

भावाथं-काजी(विचारक)वही है जो शरीर मे स्थित चैतन्य का चिन्तन करता है|वह ईशवर के प्रेम रुपी तैल मे की वत्ती जलाता है | जो प्राण रहते हुए परम-ज्योति को पहचान लेता है,वही सच्चा कजी है | मुल्ला खुदा की अवाज के नाम पर वाग देता है ओर मुसल्ला फैलाकर नमाज पढने बैठ जात है । परन्तु जो अपने शरीर के भीतर नमाज पढता है अर्थात शरीर मे व्याप्त परम ज्योति की अराधना करता है वही मुल्ला सवंत्र गरजता है अर्थात हृदय मे भगवान की आवाज सुनकर निर्भय बना हुआ घुमता है | शेख वही है जो सहज अवस्थ को प्राप्त करता है,चन्द्र ओर सूंय (हडा पिंगला) नाडियो को समन्वित करके सुपुम्न मे समाहित मे समाहित करा देता है तथा प्राण वायु को रोक लेता है | वह अघोवर्ती ओर ऊध्व्ंर्ती कमलो के बीच स्थित अनाहन (ह्र्दय) चक मे स्थित भगवान के समीप अपने आप को बवस्विन करता है | एसा ही गोख वास्त्व मे तीनो लोको का प्रिय बनता है | जगम साधु वही है जो योग क चिन्तन करता है | उस स्थान पर ध्यान केन्द्रित करता है जहां पर जीव ओर ब्र्हम का भेद समाप्त हो जाता है | जो चित को परम चेतन्द मै अवस्थित करके पुजा करते है,वे ही वास्तव मे ज्ंगम नाम के