पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/५९८

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शब्दार्थ- आदि है मूला- उत्पत्ति का मूल कारण। सूला-व्यथा।

   लोहू-खून,रक्त। वास- गर्भ वास। बैड - बैडा,रुकावट ।
   संदर्भ- कबीदास जीवन की एकता का प्रतिपादन करते है।
   भावार्थ- ओंकार सृष्टि की उत्पत्ति का मूल कारण है ।
   राजा और प्रजा (संपूर्ण समाझ) को एक ही व्यथा है। हममे      और तुममे एक ही प्रकार का रक्त है, एक ही प्राण है, एक ही जीवन है तथा एक 
   ही प्रकार के मोह ने सब को आबद्ध कर रखा है। हम सब एक
   ही प्रकार से गर्भ मे दस मास तक रहे है। जन्म और मृत्यु
   के अवसर पर हम तुम सबको एक ही स्थान प्राप्त होता है।
   सारे संसार को एक ही प्रकार से माता जन्म देती है। फिर 
   भेद होकर सबके अलग-अलग होने का क्या आधार है अथवा
   किस आधार पर भेद-भव स्थापित किया जाना चाहिए? रे 
   पागल जीव । तुम कभी ग्यान प्राप्त नही कर सके। तुमने 
   अपने चारो ओर अविधा की दीवाल बना रखी है(इसी के 
   कारण ज्ञान तुम्हरे मन-मानस मे प्रवेश नही कर पाता है।)
   तुमको सद्रगुरु की प्राप्ति नही हुइ और मोक्ष नही मिल सकी।
   इसी कारण विषयो की खाई का अवरोध बना हुआ है।
   बालक भग द्धारे आवा, भग भुगतन कूँ पुरिष कहावा ॥
   ग्यांत न सुमिरयो निरगुण सारा, विपथै बिरचि न किया बिचारा॥
   साध न मिटी जनम की, मरन तुराना आइ ।
   मन क्रम बचन न हरि भज्या, अकुर बीज नसाइ॥