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कबीर का लक्ष्य बड़ा ही व्यापक था। इन्होंने जीवों के निस्तार के लिए उच्चादर्शों के उपदेश दिए। मानव को कल्याणकारी पथ पर अग्रसर करना ही इनका सबसे बढ़ा लक्ष्य था। कबीर के हृदय में व्यथित के हेतु सहानुभूति एवं सम्वेदना की भावना थी। वे संसार को सुखी और प्रसन्न देखना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने मानव की आर्थिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक सभी दिशाओं को सुधारने की चेष्टा की। मानवता को सदैव ही शृंखलाओं से उन्मुक्त देखना चाहते थे और भविष्य में एक स्वस्थ एवं आशापूर्णं दृष्टिकोण के आकांक्षी थे। यह मानवतावादी दृष्टिकोण कबीर के साहित्य में ओत-प्रोत है। मानव के आध्यात्मिक और लौकिक जीवन को सुखी बनाने के हेतु कबीर ने बारम्बार सन्मार्ग एवं कल्याणकारी पक्ष की ओर जनता का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने पारमार्थिक सत्ता की एकता निरूपित करके यह प्रतिपादित किया कि मानव-मानव में भेद नहीं है। सब प्राणी एक ही कलाकार की कृतियाँ हैं। हिन्दू और मुसलमानों ने अपनी-अपनी मिथ्या कल्पना के आधार पर ब्रह्म के सम्बन्ध में निस्सार कल्पनाएँ स्थापित कर ली हैं। माया, भ्रम अथवा अज्ञान के कारण हम सत्य को नहीं देख पाते हैं। सत्य हो ब्रह्म है और ब्रह्म ही सत्य है। उसमें द्वैत नहीं है। वह पूर्णतया अद्वैत, अगम, अज्ञात, अमर और अनन्त है। संसार का कोई भी कार्य उसकी इच्छा के बिना नहीं सम्पादित होता है। वह सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ है। उस ब्रह्म को लेकर जो भेद-भाव हिन्दू और मुसलमानो में चलते हैं वह निरी मूढ़ता का द्योतक है। अज्ञान का विसर्जन करके मूढ़ता का परित्याग करके प्रेम सद्भावना और सहृदयता का प्रसार न केवल व्यक्तिगत जीवन के लिए वरदान है वरन् समाज के उत्थान और विकास के लिए भी नितान्त आवश्यक और उपयोगी है। सद्भावना के प्रसार से मनुष्य के जीवन में औदार्य, स्नेह, करुणा, प्रेम, त्याग तथा विश्वबन्धुत्व की भावनाओं का स्वतः विकास हो जाता है, जो मानव के लिए नितांत आवश्यक है। मनुष्य का स्वभाव श्रेय भी है, प्रेय भी है। धीरवान व्यक्ति दोनों को पृथक्-पृथक् दृष्टि से देखते हैं। साधु श्रेय को ग्रहण करते हैं और असाधु प्रेम को।

मानवतावाद कबीर की सबसे बड़ी विशेषता है। कबीर जैसे उदार सन्त कवि संसार में प्राणी मात्र को सुखी देखने के आकांक्षी थे।

मानवतावाद से प्रेरित होकर कबीर ने संसार को भाँति-भाँति के कल्याणकारी मार्ग प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया। उनके मानवतावाद का केन्द्र बिन्दु है अद्वैत ब्रह्म है। वही सर्वजगत का नियंता है।

ब्रह्म ही कबीर का प्रतिपाद्य और साध्य है।