पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७३६

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७३२] [कबीर

 ६)वर कोडी डहकाया-समभाव देखे-
     रात गवाई सोय कर, दिवस गवायो खाय।
     हीरा जनम अमोल था,कोडी व्रद्ले जाय।
 ७)वलि-यह एक पीराणिक पाऋ है। यह एक प्रसिद प्रतापी दानी राजा थे। विष्णु ने वामन अवतार 

धारण करके इनसे तीन पग पृथ्वी दान मांगी थी। दो पगो मे विष्णु ने समस्त पृथ्वी ताप ली थी और तीसरा पग इनके सिर थी। दो पगो मे विष्णु ने वलि को छ्ला था। वलि विरोचन के पु और प्रहलाद के पो कहे जाते है।

 ८)राजा विक्र्मादित्य, राजा भोज तथा राजा घीसलदेव ऐतिहासिक पाऋ है। 
   विक्रम-यह वडे प्रतापी और प्रसिद राजा हुए है। महाकवि कालिदास इन्ही के दरवार के नवरत्नो मे एक थे- ऐसा कहा जाता है। विक्रम सवत् के प्रस्थापक आप ही थे। आपके विपय मे सिन्हसन वत्तीसी' और अनेक दन्तकथाये प्रचलित है। 
  भोज-यह उज्जेन के राजा थे जिन्होने अपनी राजधानी धारा वनाई थी। इनका पालन-पोषण इनके चाचा राजा मु ज द्वारा हुआ था। राजा भोज एक सुयोग्य शासक थे। वह स्वय बहुत वडे विद्वान थे और विद्वानो का आदर करते थे। उनकी राजसभा के पणिडतो की भी बहुत सी कथाए प्रचलित है। 
 बीसलदेव- बीसलदेव अजमेर के चौहान राजा थे। इनका नाम विग्रहराज चतुथं भी है। इनका समय सवत़ १२२० के आसपास है। 
 यह बडे ही प्रतापी और वीर राजा थे। इन्होने मुसलमानो के विरुद्द्द कई चढाइयां की थी और  कई प्रदेशो को खाली कराया था। इनके वीरचरित का बहुत कुछ वणॅन इनके राजकवि सोमदेव-रचित 'ललित विग्रहराज' नाटक मे है। जिसका कुछ अश वडी-वडी शिलाओ पर खुदा मिलता है। नरपति नाल्ह ने इन्ही के चरित को लक्ष्य करके 'बीसलदेव रासो' की रचना की थी।
                         (२६७)

रे चित चेति च्य्ंति ले ताही,

      जा च्यचतत आपा पर नांहीं॥टेक॥
 हरि हिरदे एक ग्यांन उपाया, ताथे छूटि गई सब माया॥
 जहां नाद न व्य्ंद दिवस नाही राती, नही नरनारि नहीं कुल जाती।
 कहौ कबीर सरव सुख दाता, अविगत अलख अभद विधाता॥
 शव्दाथे--च्यति=ध्यान कर, चिन्तन कर। ताही=उसी का। आपा पर=अपना पराया। 
 सन्दॅभ- कबीरदास परम तत्व के साक्षात्कार का वणन करते है।