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सुमिरन कौ अंग ]
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  भावार्थ—तीनो लोको मे राम नाम सार तत्व है । जब से कबीरदास ने उसे अपने मस्तक पर धारण किया है , तब से अपार शोभा से युक्त हो गया।

विशेष—प्रस्तुत साखी मे कबीर ने राम नाम की दो विशेष्ताओ का उल्लेख किया है । प्रथम , राम नाम तत्व और सार है । द्वितीय वह तिलक के रुप मे मस्तक् पर धारण करने से व्यक्तित्व की शोभा अभिवृद्ध हो जाती है ।

शब्दार्थ— तिहुं = तीनो । मैं = मे । नाव = नाम । सोभा = शोभा ।

भगति भजन हरि नांव है , दूजा दुक्ख आपार।
मनसा बाचा क्रमनां , कबीर सुमिरण सार ॥४॥

सन्दर्भ— संसार दुखः का सजीव और सक्रिय रुप है। यहाँ हरि नाम स्मरण के अतिरिक्त और है ही क्या? विगत साखो मे कबीर ने राम नाम को सार , तत्व ,तिलक तथा शोभा का आधार माना है। प्रस्तुत अंग कि द्वितीय साखो मे भी कबीर ने कहा है " राम नाम ततसार है ।"ऐसे महत्वपूर्ण राम नाम का ध्यान मनसा, वाचा, कमंणा करना ही दुखः के आगार को विध्वंस करना है।

भावार्थ— ईश्वर का भक्ति और नाम स्मरण पर भजन ही सार तत्व है और सब अपार दुखः का आधार है । काबीर का मत है कि हरि का नाम मनसा, वाचा और कमंरण स्मरण करना सार है।

विशेष—(२)भगति ........ है : से तात्पर्य है कि भक्ति और हरि के नाम का भजन ही सार तत्व है । (२) दूजा ...... अपार भक्ति और हरि नाम स्मरण के अतिरिक्त सब कुछ अपार दुखः क अपार माया है । (३)जिस हरि नाम का इतना महत्व है , जो 'ततसार ' है , जो मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाला है , उसकी साधना मनसा , वाचा कर्मण होनी चाहिए। (४)"मनसा वाचा क्रमना' से तात्पर्य है समस्त चेतना के साथ, निष्ठा और एकाग्रता के साथ,वाणी-वचन , मन तथा कृयात्मक रुप मे अथवा हर प्रकार से । (५) कबीर ....... मार =स्मरण या हरि का भजन सार तत्व है , समस्त साधना का सारांश है। (६)सुन्दर दाग ने कबीर के प्रस्तुत भाव का समर्थन करते हुए कहा है "नाम लिया तिन नव किया सुन्दर जप तप नेम । तोरच अटल समान वर्त तुला बेठि द्त हेम।" शब्दार्थ—भगति = भक्ति । नाव - नाँम । दुखः = दुख।

कबीर सुमिरण सार है , खोर सकल जंजाल।
खादि खति सय सोघिया , दूजा देस्यो काल । (७)॥

सन्दर्भ— कबीर का मन है कि नाम जप हो समस्त मापता रा सार है। दुखके अतिरिक्त समस्त आपनाए ही ग्यान है । दिगनु मात्रा में कबीर कहा है।