पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/५७

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इस पत्थर के बांध ने जैसलमेर के उत्तर की तरफ खड़ी पहाड़ियों से आने वाला सारा पानी रोक लिया है। एक तरफ जैतसर है और दूसरी तरफ उसी पानी से सिंचित बड़ा बाग। दोनों का विभाजन करती है बांध की दीवार। लेकिन यह दीवार नहीं, अच्छी खासी चौड़ी सड़क लगती है जो घाटी पार कर सामने की पहाड़ी तक जाती है। दीवार के नीचे बनी सिंचाई नाली का नाम है राम नाल। राम नाल नहर बंध की तरफ सीढ़ीनुमा है। जैतसर में पानी का स्तर ज्यादा हो या कम, नहर का सीढ़ीनुमा ढांचा पानी को बड़े बाग की तरफ उतारता रहता है। बड़ा बाग में पहुंचने पर राम नाल राम नाम की तरह कण-कण में बंट जाती है। नहर के पहले छोर पर एक कुआं भी है। पानी सूख जाए, नहर बंद हो जाए तो भूमि में रिसन के पानी से भरे कुएं का उपयोग होने लगता है। इस बड़े कुएं में चड़स चलती है। कभी इस पर रहट भी चलती थी। बाग में छोटे-छोटे कुओं की तो कोई गिनती ही नहीं है।

बड़ा बाग सचमुच बहुत हरा और बड़ा है। विशाल और ऊंची अमराई और उसके साथ-साथ तरह-तरह के पेड़-पौधे। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में, वहां भी प्राय: नदी के किनारे मिलने वाला अर्जुन का पेड़ भी बड़ा बाग में मिल जाएगा। घने बड़ा बाग में सूरज की किरणें पेड़ों की पत्तियों में अटकी रहती हैं, हवा चले, पत्तियां हिलें तो मौका पाकर किरणें नीचे छन-छन कर टपकती रहती हैं। बांध के उस पार पहाड़ियों पर राजघराने का श्मशान है। यहां दिवंगतों की स्मृति में असंख्य सुंदर छतरियां बनी हैं।

अमर सागर घड़सीसर से ३२५ साल बाद बना है। किसी और दिशा में बरसने वाले पानी को रोकना मुख्य कारण रहा ही होगा लेकिन अमर सागर बनाने वाला समाज शायद यह भी जताना चाहता था कि उपयोगी और सुंदर तालाबों को बनाते रहने की उसकी इच्छा अमर है। पत्थर के टुकड़ों को जोड़-जोड़ कर कितना बेजोड़ तालाब बन सकता है - अमर सागर इसका अद्भुत उदाहरण है। तालाब की चौड़ाई की एक पाल, भुजा सीधी खड़ी उंची दीवार से बनाई गई है। दीवार पर जुड़ी सुंदर सीढ़ियां झरोखों और बुर्ज में से होती हुई नीचे तालाब में उतरती हैं। इसी दीवार के बड़े सपाट भाग में अलग-अलग उंचाई पर पत्थर के शेर, हाथी-घोड़े बने हैं। ये सुंदर सजी-धजी मूर्तियां तालाब का जलस्तर बताती हैं। पूरे शहर को पता चल जाता है कि पानी कितना आया है और कितने महिनों तक चलेगा।

अमर सागर का आगोर इतना बड़ा नहीं है कि वहां से साल-भर का पानी जमा हो जाए। गर्मी आते-आते यह तालाब सूखने लगता है। इसका अर्थ था कि जैसलमेर के लोग इतने सुंदर तालाब को उस मौसम में भूल जाएं, जिसमें पानी की सबसे ज्यादा