पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/६४

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 चौपड़ की तरह दाएं-बाएं काटती चौड़ी सड़कें, सीधे कतारों में बने पत्थर के सुंदर बड़े-बड़े मकानों की बस्ती, और बस्ती के बाहर दस-पांच नाडियां, दो-चार बड़े तालाब और फिर दूर क्षितिज तक फैली खडीनों में लहराती फसलें - इन गांवों में स्वावलंबन इतना सधा था कि अकाल भी यहां के अनाज के ढेर में दब जाए।

इस स्वावलंबन ने इन गांवों को घमंडी नहीं बनाया लेकिन स्वाभिमानी इतना बनाया कि राजा के एक मंत्री से किसी प्रसंग में विवाद बढ़ने पर पूरे चौरासी गांवों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ और निर्णय हुआ कि यह राज्य छोड़ देना है। वर्षों के श्रम से बने मकान, तालाब, खडीन, नाडी - सब कुछ ज्यों का त्यों छोड़ पालीवाल एक क्षण में अपने चौरासी गांव खाली कर गए।

उसी दौर में बनी ज्यादातर खडीनें आज भी गेहूं दे रही हैं। अच्छी वर्षा हो जाए, यानी जैसलमेर में जितना कम पानी गिरता है, उतना गिर जाए तो खडीन एक मन का पंद्रह से बीस मन गेहूं वापस देती हैं। हर खडीन के बाहर पत्थर के बड़े-बड़े रामकोठे बने रहते हैं। इन्हें कराई कहते हैं। कराई का व्यास कोई पंद्रह हाथ होता है और उंचाई दस हाथ। उड़ावनी के बाद अनाज खलियानों में जाता है और भूसा कराई में रखा जाता है। एक कराई में सौ मन तक भूसा रखा जा सकता है। यह भूसा सूकला कहलाता है।

तालाबों की तरह खडीनों के भी नाम रखे जाते हैं और तालाबों के अंगों की तरह ही खडीनों के विभिन्न अंगों के भी नाम हैं। धोरा है पाल। धोरा और पत्थर की चादर को जोड़ने वाला मजबूत बंध पानी के वेग को तोड़ने के लिए अर्धवृत्ताकार रखा जाता है। इसे पंखा कहते हैं। दो धोरे, दो पंखे, एक चादर और अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने का नेष्टा भी - सभी कुछ पूरी सावधानी से बनाया जाता था। बारहमासी न सही पर चौमासी यानी बरसाती नदी का वेग भी इतना होता है कि जरा-सी असावधानी पूरी खडीन को बहा ले जाए।

बहुत-सी खडीनें समाज ने बनाईं तो कुछ प्रकृति देवी ने भी। मरुभूमि में प्राकृतिक रूप से कुछ भाग ऐसे हैं जहां तीन तरफ से आड़ होने के कारण चौथी तरफ से बह कर आने वाला पानी वहीं रुक जाता है। इन्हें देवी बंध कहते हैं। यही फिर बोलचाल में दईबंध भी हुआ और किसी एक नियम के कारण इसे 'दईबंध जगह' कहने लगे।

खडीन और दईबंध जगह चौमासी चलती नदी से भरते हैं। चलती-बढ़ती नदी यहां-वहां मुड़ती भी है। इन मोड़ों पर पानी का तेज बहाव भूमि को काटता है और वहां एक