रामनाम—रामबाण अिलाज
यह देखकर कि कुदरती अिलाजोमे मैने रामनामको रोग मिटानेवाला माना है और अिस सम्बन्धमे कुछ लिखा भी है, वैद्यराज श्री गणेशशास्त्री जोशी मुझसे कहते है कि अिसके सम्बन्धका और अिससे मिलता-जुलता साहित्य आयुर्वेदमे काफी पाया जाता है। रोगको मिटानेमे कुदरती अिलाजका अपना बड़ा स्थान है और अुसमे भी रामनाम विशेष है। यह मानना चाहिये कि जिन दिनो चरक, वाग्भट वगैराने लिखा था, अुन दिनो अीश्वरको रामनामके रूपमे पहचाननेकी रूढि पडी नही थी। अुस समय विष्णुके नामकी महिमा थी। मैने तो बचपनसे रामनामके जरिये ही अीश्वरको भजा है। लेकिन मै जानता हू कि अीश्वरको ॐ नामसे भजो या सस्कृत, प्राकृतसे लेकर अिस देशकी या दूसरे देशकी किसी भी भाषाके नामसे अुसको जपो, परिणाम अेक ही होता है। अीश्वरको नामकी जरूरत नही। वह और अुसका कायदा दोनो अेक ही है। अिसलिअे अीश्वरी नियमोका पालन ही अीश्वरका जप है। अतअेव केवल तात्त्विक दृष्टिसे देखे, तो जो अीश्वरकी नीतिके साथ तदाकार हो गया है, अुसे जपकी जरूरत नही। अथवा जिसके लिअे जप या नामका अुच्चारण सास-अुसासकी तरह स्वाभाविक हो गया है, वह अीश्वरमय बन चुका है। यानी अीश्वरकी नीतिको वह सहज ही पहचान लेता है और सहज भावसे अुसका पालन करता है। जो अिस तरह बरतता है, अुसके लिअे दूसरी दवाकी जरूरत क्या?
अैसा होने पर भी जो दवाओकी दवा है, यानी राजा दवा है, अुसीको हम कम-से-कम पहचानते है। जो पहचानते है, वे अुसे भजते नही; और जो भजते है, वे सिर्फ जबानसे भजते है, दिलसे नही। इस कारण वे तोतेके स्वभावकी नकल भर करते है, अपने स्वभावका अनुसरण नही। अिसलिअे वे सब अीश्वरको 'सर्वरोगहारी' के रूपमे नही पहचानते।
पहचाने भी कैसे? यह दवा न तो वैद्य उन्हे देते है, न हकीम, और न डॉक्टर। खुद वैद्यो, हकीमो और डॉक्टरोको भी अिस पर आस्था नही। यदि वे बीमारोको घर बैठे गगा-सी यह दवा दे, तो अुनका धन्धा कैसे चले? अिसलिअे अुनकी दृष्टिमे तो अुनकी पुडिया और शीशी ही रामबाण दवा है। अिस दवासे अुनका पेट भरता है और रोगीको हाथोहाथ फल
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