३१
पश्चिमकी ओर नजर न रखे
हमें अपना यह वहम दूर करना होगा कि जो कुछ करना है, अुसके लिअे पश्चिमकी तरफ नजर दौडाने पर ही आगे बढा जा सकता है। अगर कुदरती अिलाज सीखनेके लिअे पश्चिमकी तरफ नज़र दौडाने पर ही आगे बडा जा सकता है। अगर कुदरती अिलाज सीखनेके लिअे पश्चिम जाना पडे, तो मै नही मानता कि वह अिलाज हिन्दुस्तानके कामका होगा। यह अिलाज, तो सबके घरमे मौजूद है। हमेशा कुदरती अइलाज करनेवालेकी राय लेनेकी जरूरत भी न रहनी चाहिये। वह अितनी आसान चीज है कि हरएक आदमीको उसे सीख लेना चाहिये। अगर रामनाम लेना सीखनेके लिअे विलायत जाना जरूरी हो, तब तो हम कहीके भी न रहे। रामनामको मैने अपनी कल्पनाके कुदरती अिलाजकी बुनियाद माना है। इसी तरह यह सहज ही समझमे आने लायक है कि पृथ्वी, पानी, आकाश, तेज और वायु के अिलाजके लिअे समुद्र पार जानेकी जरूरत हो ही नहीं सकती। दूसरा जो कुछ सीखना है वह यही है––गावोमे मौजूद है। देहाती दवाअे, जडी-बूटिया, दूसरे देशोमे नही मिलेगी। वे तो आयुर्वेद में ही है। अगर आयुर्वेदवाले धूर्त हो, तो पश्चिम जाकर आनेसे वे कुछ भले नहीं बन जाअेगे। शरीर-शास्त्र पश्चिम से आया है। सब कोई कबूल करेगे कि अुसमे से बहुत कुछ सीखने लायक है। लेकिन अुसे सीखनेके बहुतसे जरिये इस मुल्कमे मिल सकते है। मतलब यह कि पश्चिममे जो कुछ अच्छा है, वह अैसा है और होना चाहिये कि सब जगह मिल सके। साथ ही, यहा यह भी कह देना जरूरी है कि कुदरती अिलाज सीखनेके लिए यह बिलकुल जरूरी नही कि शरीर-शास्त्र सीखा ही जाय।
कुने, जुस्ट, फादर क्नेअिप वगैरह लोगोने जो लिखा है, सो सबके लिअे है और सब जगहोके लिअे है। वह सीधा है। अुसे जानना हमारा धर्म है। कुदरती अिलाज जाननेवालोके पास अुसकी थोडी-बहुत जानकारी होती है, और होनी चाहिये। कुदरती अिलाज अभी गावोमे तो दाखिल हुआ ही नही है। अुस शास्त्रमे हम गहरे पैठे ही नहीं है। करोडोको ध्यानमे रखकर अुस पर सोचा नही गया है। अभी वह शुरू ही हुआ है। आखिर वह कहा जाकर रुकेगा, सो कोई कह नही सकता। सभी शुभ साहसोकी तरह उसके पीछे भी तपकी ताकत जरूरी है। नजर पश्चिमकी ओर न जाय, बल्कि अपने अन्दर जाय।
हरिजनसेवक, २-६-१९४६
४३