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कुदरतके नियम

स॰––आपके सुझावके मुताबिक रामनामका––सच्चिदानन्दके नामका ––मेरा जप चालू है। और अुससे मेरी क्षयकी बीमारीमे सुधार भी होने लगा है। यह सही है कि साथमे डॉक्टरी अिलाज भी चल रहा है। लेकिन आप कहते है कि युक्ताहार और मिताहारसे मनुष्य बीमारियोसे दूर रहकर अपनी अुमर बढा सकता है। मै तो पिछले २५ बरससे मिताहारी रहता आया हू, फिर भी आज अैसी बीमारीका भोग बना हुआ ह। अिसे क्या पहले जन्म या अिस जन्मकी कमनसीबी कहा जाय?

आप यह भी कहते है कि मनुष्य १२५ बरस जी सकता है। स्वर्गीय महादेवभाईकी आपको बडी जरूरत थी, यह जानते हुए भी भगवानने उन्हें अुठा लिया। युक्ताहारी और मिताहारी महादेवभाअी आपको अीश्वर-स्वरूप मानकर जीते थे, फिर भी वे खूनके दबावकी बीमारी (ब्लड-प्रेशर) के शिकार बनकर सदाके लिअे चल बसे। भगवानका अवतार माने जानेवाले रामकृष्ण परमहस क्षय जैसी कैन्सरकी खतरनाक बीमारीके शिकार होकर कैसे मर गये? वे भी कैन्सरका सामना क्यो न कर सके?

ज॰––मै तो स्वास्थ्यकी हिफाजतके जो नियम खुद जानता हू वही बताता हू। लेकिन मिताहार या युक्ताहार किसे माना जाय, यह हरअेक आदमीको जानना चाहिये। अिस बारेमे जिसने बहुतसा साहित्य पढा हो और बहुत विचार किया हो, वह खुद भी अिसे जान सकता है। लेकिन इसके यह मानी नही कि अैसा ज्ञान या जानकारी शुद्ध और पूरी है। अिसीलिअे कुछ लोग जिन्दगीको प्रयोगशाला कहते है। कई लोगोके तजरबोको अिकट्ठा करना चाहिये और अुनमे से जानने लायक बातको लेकर आगे बढना चाहिये। लेकिन अेसा करते हुए अगर कामयाबी न मिले, तो भी किसीको दोष नही दिया जा सकता। खुदको भी दोषी नही कहा जा सकता। नियम गलत है, यह कहनेकी भी एकदम हिम्मत न करनी चाहिये। लेकिन अगर हमारी बुद्धिको कोई नियम गलत मालूम हो, तो सही नियम कौनसा है यह बतानेकी ताकत अपनेमे पैदा करके उसका प्रचार करना चाहिये।

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