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"राम! राम!"

"नअी दिल्ली, २९-१-४८

"चि॰ किशोरलाल,

"आज प्रार्थनाके बाद मैं अपना सारा समय पत्र लिखनेमे बिता रहा हू। शकरनजीकी लडकीके मरनेके समाचार यहा भेजकर तुमने ठीक किया। मैने अुनको पत्र लिख दिया है। मेरे वहा (सेवाग्राम) आनेकी बातको अभी अनिश्चित् समझना चाहिए। वहा ता॰ ३ से ता॰ १२ तक रहनेकी बात मैं चला रहा हू। अगर यह कहा जाय कि दिल्लीमें मैंने 'किया' है, तो प्रतिज्ञा-पालनके लिअे मेरा यहा रहना अब जरूरी नही है। अिसका आधार यहाके मेरे साथियो पर है। शायद कल निश्चय किया जा सकेगा। मेरे आनेका मकसद अेक तो अिस पर विचार करना है कि रचनात्मक काम करनेवाली सारी सस्थाये अेक हो सकती है या नहीं, और दूसरे, जमनालालकी पुण्यतिथि मनाना है। मुझमे ठीक शक्ति आ रही है। अिस बार किडनी और लिवर दोनो बिगडे है। मेरी दृष्टिसे यह रामनाममे मेरे विश्वासके कच्चेपनकी वजह से है।

दोनोको आशीर्वाद"

हरिजनसेवक, ८-२-१९४८

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"राम! राम!"

जब गाधीजी प्रार्थना-सभा के बीचसे रस्सियोसे घिरे रास्तेमे चलने लगे, तो अुन्होंने प्रार्थनामे शामिल होनेवाले लोगोके नमस्कारोका जवाब देनेके लिअे लडकियोके कन्धोसे अपने हाथ अुठा लिए। अेकाअेक भीडमे से कोअी दाहिनी ओर से भीड को चीरता हुआ अुस रास्ते पर आया। छोटी मनुने यह सोचा कि वह आदमी बापूके पाव छूनेको आगे बढ रहा है। अिसलिअे अुसने अुसे अैसा करनेके लिअे झिडका, क्योकि प्रार्थनाके लिअे पहले ही देर हो चुकी थी। अुसने रास्तेमे आनेवाले आदमीका हाथ पकडकर अुसे रोकनेकी कोशिश की। लेकिन अुसने जोरसे मनुको धक्का दिया, जिससे अुसके हाथकी आश्रम-भजनावली, माला और बापू का पीकदान नीचे गिर गए। ज्यो ही वह बिखरी हुअी चीजो को उठाने के लिअे झुकी, वह आदमी बापूके सामने