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रामनाम


अिसलिअे मै कहता हू कि आप अिस कोशिशमे लगे रहिये और जब तक काम करते है तब तक सारा समय मन-ही-मन रामनाम लेते रहिये। अिस तरह करनेसे अेक दिन अैसा भी आयेगा, जब रामनाम आपका सोते-जागतेका साथी बन जायगा और अुस हालतमे आप अीश्वरकी कृपासे तन, मन और आत्मासे पूरे-पूरे स्वस्थ और तन्दुरुस्त बन जायगे।"

––नअी दिल्ली, २५-५-'४६

मौन विचारकी शक्ति

आजकी प्रार्थना-सभामे गाधीजीने कहा "आप सब मेरे साथ रामनाम लेने या रामनाम लेना सीखनेके लिअे रोज रोज अिन प्रार्थना-सभाओमे आते रहे है। लेकिन रामनाम सिर्फ जबानसे नही सिखाया जा सकता। मुहसे निकले बोलके मुकाबले दिलका मौन विचार कही ज्यादा ताकत रखता है। अेक सच्चा विचार सारी दुनिया पर छा सकता है––अुसे प्रभावित कर सकता है। वह कभी बेकार नही जाता। विचारको बोल या कामका जामा पहनानेकी कोशिश ही अुसकी ताकतको सीमित कर देती है। अैसा कौन है जो अपने विचारको शब्द या कार्यमे पूरी तरह प्रकट करनेमे कामयाब हुआ हो?"

आगे चलकर गाधीजीने कहा "आप यह पूछ सकते है कि अगर अैसा है, तो फिर आदमी हमेशाके लिअे मौन ही क्यो न ले ले? अुसूलकी दृष्टिसे तो यह सभव है, लेकिन जिन शर्तोंके मुताबिक मौन विचार पूरी तरह क्रियाकी जगह ले सकते है, अुन शर्तोंको पूरा करना बहुत मुश्किल है। मै खुद अपने विचारो पर अिस तरहका पूरा-पूरा काबू पा लेनेका कोअी दावा नही कर सकता। मै अपने मनसे बेमतलब और बेकारके खयालोको पूरी तरह दूर नही रख सकता। अिस हालतको पाने या अिस तक पहुचनेके लिअे तो अनन्त धीरज, जागृति और तपश्चर्याकी जरूरत है।

"कल जब मैने आपसे यह कहा था कि रामनामकी शक्तिका कोअी पार नही है, तब मै किसी आलकारिक भाषामे नही बोल रहा था, बल्कि सचमुच यही कहना भी चाहता था। मगर अिस चीजको महसूस करनेके लिए बिलकुल शुद्ध और पवित्र हृदयसे रामनामका निकलना जरूरी है। मै खुद अिस हालतको पानेकी कोशिशमे लगा हुआ हू। मेरे दिलमे तो अिसकी अेक तसवीर खिच गई है, लेकिन मै अिसे पूरी तरह अमलमे