पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७३
अध्याय २५ : हिंदुस्तानमें


की जांच करने का निश्चय किया। गरीब लोग अपने पाखानों की जांच करने में बिलकुल आनाकानी न करते थे । यही नहीं, बल्कि जो सुधार बताये गये वे भी उन्होंने किये । पर जब हम राजकाजी लोगों के घरो की जांच करने गये तब कितनी ही जगह तो हमें पाखाना देखने तक की इजाजत न मिली-सुधार की तो बात ही क्या ? आम तौरपर हमें यह अनुभव हुआ कि धनिकों के पाखाने अधिक गंदे थे । खूब अंधेरा, बदबू और अजहद गंदगी थी । बैठने की जगह कीड़े कुलबुलाते थे । मानो रोज जीते जी नरक में जाना था । हमने जो सुधार सुझाये थे, वे बिलकुल मामूली थे, मैला जमीन पर नहीं बल्कि कूड़ों में गिरा करे । पानी भी जमीन में जज्ब होने के बदले कूंडों में गिरा करे । बैठक और भंगी के आने की जगह के बीच में दीवार रहती है वह तोड़ डाली जाय, जिससे भंगी सारा हिस्सा अच्छी तरह साफ कर सके; और पाखाना भी कुछ बड़ा हो जाय तो उसमें हवा-प्रकाश जा सके । बड़े लोगों ने इन सुधारों के रास्ते में बड़े झगड़े खड़े किये और आखिर होने ही नहीं दिये ।

समिति को ढेड़ों के मुहल्लों में भी जाना था, पर सिर्फ एक ही सदस्य मेरे साथ वहां जाने के लिए तैयार हुआ । एक तो वहां जाना और फिर उनके पाखाने देखना; परंतु मुझे तो ढेड़वाडा़ देखकर सानंशश्चर्य हुआ । अपनी जिंदगी में मै पहली ही बार ढेड़वाड़ा गया था । ढेड़ भाई-बहन हमें देखकर आश्चर्य-चकित हुए । हमने कहा--“ हम तुम्हारे पाखाने देखना चाहते हैं ।”

उन्होंने कहा-“हमारे यहां पाखाने कहां ? हमारे पाखाने तो जंगल में होते हैं । पाखाने तो होते हैं आप बड़े लोगों के यहां । ”

मैने पूछा-“अच्छा तो अपने घर हमें देखने दोगे ?”

“हां, साहब, जरूर ! हमें क्या अज्र हो सकता है ? जहां जी चाहे आइए । हमारे तो ये ऐसे ही घर हैं । ”

में अंदर गया । घर तथा आंगन की सफाई देखकर खुश हो गया । घर साफ-सुथरा लिपा-पुता था । आंगन बुहारा हुआ था; और जो थोड़े-बहुत बरतन थे वे साफ मंजे हुए चमकदार थे ।

एक पाखाने का वर्णन किये बिना नहीं रह सकता । मोरी तो हर घर में रहती ही है, पानी भी उसमें बहता है और पेशाब भी किया जाता है। अतएव