पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३३७

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अध्याय २३ : धर फेरफार और’ - बड़ी खुशीसे करते । | यह तो नहीं कह सकते कि उनके अक्षर-छान्न अर्थात् पुस्तकी शिक्षकी मैंने कोई परवाह नहीं की; परंतु हां, मैंने उसका त्याग करतेमें कुछ संकोच नहीं किया। इस मौके लिए मेरे लड़के भेरी नियत कर सकते हैं और कई बार उन्होंने अपना असंतोष प्रदर्शन भी किया है। मैं जानता हूं कि हमें कुछ अंश मेरा दोष है । उन्हें पुस्तकी शिक्षा देने की इच्छा मुझे डर हुआ करतीं, कोशिश भी करता; परंतु इस कामें हमेशा कुछ-न-कुछ दिन ब ह । उ* लिए धर दूसरी शिक्षाका प्रबंध नहीं किया था। इसलिए उन्हें अपने साथ पैदल दफ्तर् ले जाता । दफ्तर :ई मील भी है इसलिए सुबह-शाम पिलर च मीलकी कारन उनको र हो जाया करती । के चलते हुए उन्हें कुछ लिखाने की कोशिश करता; पर वह भी जब दूसरे कोई साथ चलने वाले न होते । दफ्तरों मबक्किलों सौर मुशियोंके संपर्क में ३ आते, मैं बः देता था तो कुछ पड़ते, इधर-उधर घूमते, बाजले कोई सामान-सौ लाना हो तो लाते । सबसे जेठे हरिदको छोड़कर सब बच्चे इसी तरह परवरिश पाये । हरिलाल देशमें रह गया था । यदि में अक्षर-ज्ञान के लिए एक घंटा भी नियमित रूप से दे पाता तो मैं मानता कि उन्हें आदर्श शिक्षण मिला है। किंतु मैं यह नियम न रख सका, इसका दुःख्ने उनको और मुको रह गया है। सबसे बड़े बेटेने तो अपने जीकी जलन मेरे तथा सर्वसाधारण सामने प्राड की है। दूसरोंने अपने हृदयकी उदारतासे काम लेकर, इस दोषको अनिवार्य समझकर उसुको सहन कर लिई है। पर इस कमी के लिए मुझे पता नहीं होता और यदि कुछ है भी तो इतना ही कि मैं एक आदर्श पिता साबित न हुन्न । परंतु यह मेरा मत है कि मैंने अक्षरज्ञानकी आहुति भी लोक-सेवा के लिए दी है। हो सकता है कि उसके सूलों अज्ञान हो; पर में इतना कह सकता हूं कि वह सद्भावपूर्ण थी। उनके चरित्र और जीवनके निर्माश करनेके लिए जो-कुछ उति और आवश्यक था, उसमें मैंने कोई कसर नहीं रहने दी हैं और मैं मानता हूं कि प्रत्येक माता-पिताका यह अनिवार्य कर्तब्य है । मेरी इतनी कोशिशके बावजूद मेरे बालों के जीवन में जो खामियां दिखाई दी हैं, मेरा यह दृढ़ मत है कि वे इस दंपतीकी खामियोंका प्रतिबिंब है।