पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३३८

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आत्म-कथा : भाई ४ बालकोंको जिस तरह मां-बापकी आकृति विरासत में मिलती है, उसी तरह उनके गुण-दोष भी विरासतमें अवश्य मिलते हैं। हां, आस-पासके वाताबरणके कारण तरह-तरहकी घट-बढ़ी जरूर हो जाती है। परंतु मूल पूंजी तो वही रहती हैं, जो उन्हें बाप-दादोंसे मिली होती है। यह भी मैंने देखा है कि कितने ही बालक दोषोंकी इस विरासतसे अपनेको बचा लेते हैं। पर यह तो आत्मक मूल स्वभाव है, उसकी बलिहारी है ।। मेरे और पोलकके दरमियान इन लड़कोंके अंग्रेजी-शिक्षण के विषय में गरमागरम बातचीत होती रही है। मैंने शुरूसे ही यह माना है कि जो हिंदुस्तानी माता-पिता अपने बालकोंको बचपनसे ही अंग्रेजी पढ़ना और बोलना सिखा देते हैं वे उनका और देशका द्रोह करते हैं। मेरा यह भी मत है कि इससे बालक अपने देश की धामिक और सामाजिक विरासतुसे वंचित रह जाते हैं और उस अंशतक देशकी' और जगत्की सेवा करने के कम योग्य अपनैको बनाते हैं। इस कारण मैं हमेशा जान-बूझकर बालक के साथ गुजरातीमें ही बातचीत करता । पोलकको यह पसंद न आता ! वह कहते---- ‘अर बालकोंके भविष्यको बिगाड़ते है।' वह मुझे बड़े आग्रह और प्रेमसे समझाते कि अंग्रेजी-जैसी व्यापक भाषाको यदि बच्चे बचपन से ही सीख ले तो संसारमें जो आज जीवन-संघर्ष चल रहा है । उसकी एक बड़ी मंज़िल वे सहज में ही तय कर लेंगे । मुझे यह दलील न पटी' । । अब मुझे याद नहीं पड़ता कि अंतको मेरा जवाब उन्हें जंच गया या मेरी हुङको देखकर वह खामोश हो रहै । यह बातचीत कोई बीस बरस पहले की है। अब तो मेरे उस समयके में विचार अनुभवसे और भी दृढ़ हो गये हैं और भले ही भेरे बालक अक्षर-ज्ञानमें कच्चे रह गये हों, फिर भी उन्हें मातृ-या जो सामान्य ज्ञान' सहज ही मिल गया हैं उससे उनको र देशको लइ * हीं है हैं और आज ६ परदेशी-जैसे नहीं हो रहे हैं। वे दुभाषिया तो आसानी से हो गये थे; क्योंकि बड़े अंग्रेज मित्र-मंडलके सहवास नैसे और ऐसे देशमें रहनेसे जहां अंग्रेजी विशेषरूप से बोली जाती है, वे अंग्रेजी बोलना और मामूली लिखना सीख . गये थे।