पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३७७

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अत्-िकथा : र ४ दिनोंमें लिखे शब्द याद आते हैं-- * आपको सत्यके लिए किसी दिन फांसीपर लटकना पड़े तो आश्चर्य नहीं । ईश्वर आपको सन्मार्ग दिखावे और आपकी रक्षा करे ।' सोविजके साथ यह बातचीत तो उस समय हुई थीं जब उस अधिकारीकी नियुक्तिका आरंभ-काल था । परंतु उस आरंभ और अंतका अंतर थोड़े ही दिनका था। इसी बीच मुझे पसली वर की बीमारी जोरके साथ पैदा हो गई थी। | चौदह दिनके उपवासके बाद अभी मेरा शरीर पनपा नहीं था, फिर भी मैं वायदमें पीछे नहीं रहता था । और कई बार धरसे कबायदके मैदानतक पैदल जाता था। कोई दो मील दूर वह जगह थी और उसके फलस्वरूप अन्तों मुझे खटिया पकड़नी पड़ी थी ! | इसी स्थितिमें मुझे कॅपमें जाना पड़ता था। दूसरे लोग तो वहां रह जाते थे और मैं शामको घर वापस आ जाता । यहीं सत्याग्रहका अफसर खड़ा हो गया था। उस अफसरने अपनी हुकूमत चलाई। उसने हमें साफ-साफ कह दिया कि हर बातमें मैं ही आपका मुखिया हूं । उसने अपनी अफसरीके दो-चार पदार्थ पाठ (नमूने) भी हमें बताये । सोराबजी मेरे पास पहुंचे। वह इस ‘जहांगीरी'को बरदाश्त करनेके लिए तैयार न थे । उन्होंने कहा--- "हमें सब हुक्म आपकी मार्फत ही मिलने चाहिए। अभी तो हम तालीमी छावनीमें हैं; पर अभी से देखते हैं कि बेहूदे हुक्म छूटने लगे हैं। उन जवानोंमें और हममें बहुतेरी बातोंमें भेद-भाव रखा जाता है। यह हमें बरदाश्त नहीं हो सकता ! इसकी व्यवस्था तुरंत होनी चाहिए, नहीं तो हमारा सब काम बिगड़ जायगा। ये सब विद्यार्थी तथा दूसरे लोग, जो इस काममें शरीक हुए हैं, एक भी बेहूदा हुक्म बरदाश्त न करेंगे । स्वाभिमानकी रक्षा करनेके उद्देश्य से जो काम हमने अंगीकार किया है, उसमें यदि हमें अपमान ही सहन करना पड़े तो यह नहीं हो सकता ।” | मैं उस अफसरके पास गया और मेरे पास जितनी शिकायतें आई थीं, सब उसे सुना दीं। उसने कहा- “ये सर्व शिकायतें मुझे लिखकर दे दो।" साथ ही उसने अपना अधिकार भी जताया। कहा- “ शिकायत आपके मार्फत नहीं हो सकती। उन नायव अफसरोके मार्फत मेरे पास आनी चाहिए।' मैने उत्तरमें कहा---- “मुझे अफसरी नहीं करना है । फौजी रूपमें तो में एक मामूली सिपाही ही हूं । परंतु हमारी टुकड़ीके मुखियाकी हैसियतसे आपको