पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८२

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अध्याय ३१ : वह सप्ताह !--१ ४६५ बुलाया और बात की-- “मुझे रातको स्वप्नमें विचार आया कि इस कानूनके जवाबमें हमें सारे देशसे हड़ताल करनेके लिए कहना चाहिए । सत्याग्रह आत्मशुद्धिकी लड़ाई है । यह धार्मिक लड़ाई है । धर्म-कार्यको शुद्धिसे शुरू करना ठीक लगता है । एक दिन सभी लोग उपवास करें और कामधंधा बंद रक्खें । मुसलमान भाई रोजाके अलावा और उपवास नहीं रखते; इसलिए चौबीस घंटेका उपवास रखनेकी सलाह देनी चाहिए । यह तो नहीं कहा जा सकता कि इसमें सभी प्रांत शामिल होंगे या नहीं। बंबई, मद्रास, बिहार और सिंधकी आशा तो मुझे अवश्य है । पर इतनी जगहोंमें भी अगर ठीक हड़ताल हो जाय तो हमें संतोष मान लेना चाहिए ।” यह तजवीज श्री राजगोपालाचार्यको बहुत पसंद आई । फिर तुरंत ही दूसरे मित्रोंके सामने भी रक्खी । सबने इसका स्वागत किया । मैंने एक छोटा-सा नोटिस तैयार कर लिया । पहले सन् १९१९के मार्चकी ३० तारीख रक्खी गई थी, किंतु बादमें ६ अप्रैल कर दी गई । लोगोंको खबर बहुत थोड़े दिन पहले दी गई थी । कार्य तुरंत करनेकी आवश्यकता समझी गई थी । अतः तैयारीके लिए लंबी मियाद देनेकी गुंजाइश ही नहीं थी । पर कौन जाने कैसे सारा संगठन हो गया ! सारे हिंदुस्तानमें-- शहरोंमें और गांवोंमें-हड़ताल हुई । यह दृश्य भव्य था ! - ३१ वह सप्ताह !-१ दक्षिणमें थोड़ा भ्रमण करके बहुत करके मैंचौथी अप्रैलको बंबई पहुंचा । श्री शंकरलाल बैंकरका ऐसां तार था कि छठी तारीख का कार्यक्रम पूरा करनेके लिए मुझे बंबईमें मौजूद रहना चाहिए । किंतु उससे पहले दिल्लीमें तो ३० मार्चको ही हड़ताल मनाई जा चुकी थी उन दिनों दिल्लीमें स्व० स्वामी श्रद्धानंदजी तथा स्व० हकीम अजमलखां साहबकी