पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१०८

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१०० सच्चे खिष्टियान की भात्मिक गति । मैं पापमला से अत भूला निस दिन करता कर्म अनीत दया तेरी भासा मेरी अपने दास को कर पुनीत ॥ ५ इस संसार के कुव्यवहार से असंतुष्ट है मन मेरी मांख तो ताकती स्वर्ग को नित नतन दया तेरी भासा मेरी प्रभु मुझे कर ग्रहण ॥ जहां सत सुख ५ पंचानवेवां गीत। 7,6s. १ जैसे पति के वियोग में पठो रो कलपती वैसे प्रभुजी कलीसया तेरे हेत तड़पती है यिता पास स्वर्ग को गया बैठा उस के दहने हाथ पर कलीसया रही भम होने चाहती पत के साथ। पर