पृष्ठ:Songs and Hymns in Hindi.pdf/१२७

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सच्चे ख्रिष्टियान की अात्मिक गति । ११० है इस दुनया 1 किया था हुक्म न माना ११० एक सौ दसवां गीत । 'सुनो से जान मन तुम को यहां से कूच करना है। रहो तुम यादे हक में जब तलक यहां आब दाना है ॥ अरे गाफिल त क्यों भला के लालच रखा कुछ खौफ भी हक का अगर जन्नत को जाना है ॥ करा टुक गौर तुम दिल में कहा था क्या तुम्हें उस ने । जा हक ने उसे तुम ने पड़े सोते हो गफलत में ज़रा टुक अांख को खोलो। हुई है शाम उठ बैठो मुसाफिर घर को जाना है । न दौलत काम आयेगी न इस दुनया से कुछ हासिल । अगर तुम सोचकर देखा यह सब कुछ छोड़ जाना है । जो मलकउलमौत आवेगा तुम्हें इस जा से लेने को । बहाना क्या करोगे तुम वह तुम से भी सयाना है । खुदा जब तुझ से पूछेगा तू क्या लया उस अालम से । दिया था उम्र और दौलत त क्या नुहफा कमाया है । अगर ग़ाफ़िल रहे हक से तुम्हें दोज़ख में डालेगा । रहे हो याद में हक की तो जनत घर तुम्हारा हयात अबदी अगर चाहा तो कह यीशु मसीह से तू । वही शाफी है उम्मत का कि जिस का नाम यीशू है ॥ सलीब ऊपर उसे रखकर किया है कत्ल जालिम ने । उसे मत भूल ऐ अासी वही तेरा ठिकाना है ॥ ॥