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१४२ :: तुलसी चौरा
 

वहाँ के लोगों ने बताया कि आचार्य जी जाप कर रहे हैं। पर्ण- शाला लौटने पर दर्शन होंगे।

सुबह खिल आयी थी। पक्षियों की चहचहाहट फैल रही थी। श्री- मठ के संचालक उनके पास आए।

'आप लोग सीढ़ियों के पास जाएँ। आचार्य जी के पास जाकर बैठें। बातें वहीं हो जाएँगी। दोनों वहीं पहुँचे। अब वे सीढ़ियों पर ही बैठे थे। उन्हें देखकर लगा कि जैसे तालाब में खिले कई कमलों में से एक कमल सीढ़ियों पर आकर बैठ गया है। पूर्व में सूर्योदय हो रहा था। सीढ़ियों पर बैठा ज्ञान का सूर्य उसका स्वागत कर रहा था। उनके पैरों के पास फलों की थाल रखकर रवि और कमली ने साष्टांग प्रणाम किया।

उनका दायाँ हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठ गया। रवि ने आद- तन यह सोचकर अपना परिचय देना चाहा कि शायद है पहचान न पाये हों।

शंकरमंगलम विश्वेश्वर शर्मा के……………

उन्होंने मुस्कराकर हाथ से संकेत किया और बैठने को कहा। कमली ने एक पृष्ठ खोल लिया और उनके चेहरे को ध्यान से देख ने लगी। उसी तरह प्रसन्न मुद्रा में उन्होंने उसे पढ़ने का संकेत किया।

कमली ने कहा, 'मेरा जो थोड़ा बहुत ज्ञान है, उसके आधार पर कनक धारा स्तोत्र 'सौन्दर्य लहरी' का फेंच में मैंने अनुवाद किया है। आप सुनेंगे तो कृपा होगी।' वे मुस्कराये। उन आँखों में ज्ञान और करुणा का अवाह सागर था। उसने पहले संस्कृत में पढ़ा और फिर फ्रेंच अनुवाद पढ़ा।

रवि उन दोनों के बीच पवित्र साक्षी की तरह बैठा हुआ था।

सीढ़ियों के ऊपर भक्तों की भीड़ लग गयी। एक यूरोपीय युवती द्वारा 'सौन्दर्य लहरी' को स्पष्ट उच्चारण, फिर उसका फ्रेंच अनुवाद सुनकर भीड़ ठगी सी खड़ी रह गयी। उनके लिए यह अभूतपूर्व