रवि को भी लगा, यही हुआ होगा। बसंती उससे बातें कर लें,
तो उसके गुस्से का कारण पता चल जाये। उसी दिन शाम तय भी
किया गया कि बसंती कामाक्षी से बात कर रे। श्री मठ के मैनेजर
ने शर्मा जी को लिखा था कि आचार्य जी में किस तरह इन दोनों
को स्नेह दिया। शर्मा को लगा, यह पत्र कामाक्षी को पढ़ा दिया जाए।
खुद पढ़ें या रवि इसे पढ़कर सुनाएँ तो यह समझेगी, कि यह जान
बूझकर पढ़ा गया होगा। पत्र को इसलिए पार्वती और कुमार के
हाथ भिजवा दिया। वे जल्दी ही लौट आए।
'अम्मा ने तो पथ को छूने से भी मना कर दिया।'
शर्मा की हिम्मत नहीं पड़ी कि खुद जाकर दें। अंत में बसंती के हाथ उस पत्र को कामाक्षी तक पहुँचाना तय हुआ। रवि और कमली यहाँ नहीं थे। तन उसके कानों खबर लग गयी थी। चीस चिल्लाहट मचायी थी। जाने क्या-क्या कह डाला था। क्या-क्या पूछ डाला था। शर्मा यह बात रवि, कमली से छिपा गये। उनका मन दुखी हो जाएगा। कानाक्षी को रक्तचाप को बीमारी है। घर पर उसकी सलाह के बिना, उसकी स्वीकृति के बिना, की जाने वाली तमाम तैयारियों ने उसे भीतर तक हिला दिया था। वह शरीर और मन दोनों से अस्वस्थ थी। कुमार से कहकर नारियल के बांण वाली खाट भी डलवायी, पर नहीं मानी। कच्ची फर्श पर लेटती। न खाना, न पीना। एकदम दुबली हो गयी थी। उस शाम बसंती के आने के वक्त रवि या खुद वह वहाँ नहीं रहेंगे――यह उन्होंने तय कर लिया था। योजना के अनुसार वे घाट चले गये। रवि इरैमुडिमणि के पास चला गया। कुमार परीक्षा की तैयारी कर रहा था, पार्वती घर के काम कर रही थी।
बसंती जब भी बंबई से आती, छुहारे, किसमिश, काजू लाती। पूजन के लिये इन चीजों को अक्सर जरूरत होती।
बसंती शाम को आयी।