के लिए उनसे चन्दे की रसीद। जहाँ मतलब पैसे का हो वहाँ आपने उन्हें हिन्दू आस्तिक मान लिया पर जब बात दर्शन की आयी तो
आपके लिए ये विधर्मी हो गए। यह कैसा अन्याय है? यहाँ अदालत
को यह सूचित कर देना चाहता हूँ कि मेरी मुवक्किल जब मन्दिरदर्शनार्थ गयी थी तब उन्होंने यह दान मन्दिर के निर्माण के लिए दिया था। तब धर्माधिकारी को मन्दिर की पवित्रता भंग होने का विचार क्यों नहीं आया? इतने दिनों के बाद अगर आया है, तो क्या इसके पीछे कोई वजह नहीं हो सकती?
प्रतिपक्ष के वकील ने फिर कुछ कहना चाहा। पर न्यायाधीश ने वेणुकाका को बोलने की अनुमति दी।
बेणुकाका ने अपना पूरा पक्ष प्रस्तुत किया, रसीद भी न्यायाधीश के पास रख दी और बैठ गये। अगले दिन बहस के लिए अदालत स्थगित कर दी गयी।
इस मुकदमें की कार्यवाही को देखने के लिए भूमिनाथपुरम शंकर- मंगलम से कई लोग आए और अदालत से बाहर निकलने पर सभी को पत्रकारों ने घेर लिया और धड़ा-धड़ फोटो खींचने लगे। कई वकीलों ने बेणुकाका की तारीफ की।
सीमावय्यर भी प्रेक्षकों की भीड़ में थे। वहाँ से खिसकने लगे।
'विश्वेश्वर देखो, सब कुछ कर दिया और पानी के सांप की तरह कैसे निकल भागे।' इरैमुडिमणि ने―शर्मा के कानों में कहा। 'पानी का सांप।'
अव सीमावय्यर नम पड़ गया था। कचहरी से लौटते रास्ते में मण्डी में रुकवाकर बेणूकाका ने विवाह के लिए सब्जी वाले को पेशगी दी, तो शर्मा जी ने धीमे से कहा, 'अब केस पहले निपट जाए।'
'केस की चिंता तुम मत करो।' वेणुकाका ने शर्मा को उत्साह से हिलाया।
उनका आत्म विश्वास, साहस और उत्साह, शर्मा के लिए नहीं