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तुलसी चौरा :: ३७
 


को क्यों ठहराया गया है। मान लो वह पलट कर एक सवाल कर दे कि क्या इस देश में प्रेम करना पाप है, तो? अगर वह घर की असुविधाओं की बात कहे और वह लड़की इन असुविधाओं के साथ भी यहाँ रहने को तैयार हो जाये तब? उन्हें तकलीफ हुई कि वर्षों बाद घर लौटते बेटे के स्वागत में इतनी दिक्कतें आ रही हैं। इन्हें लगा, अगर उनका बेटा, एक माह बाद आता तो उन्हें इस मुद्दे पर सोचने को पर्याप्त वक्त मिल जाता। यही वजह थी पार्वती को भिजवा कर उन्होंने पत्र को भेजने से रोका था।

भूमिनाथपुरम जाते और वहाँ से लौटते में भी वे लगातार रवि के पत्र के विषय में सोचते जा रहे थे। वे लौटे, तो पार्वतो सो चुकी थी। सुबह पूजा पाठ समाप्त कर वे काँफी पी रहे थे कि पार्वती ने कहा, 'बाऊ मेरे पहुँचने के पहले ही बसंती दी ने पत्र भिजवा दिया था। और हाँ जब आप भूमिनाथपुरम गये थे तब इर्रमणिमुडि आपसे मिलने आये थे। सुबह फिर आने को कह गए हैं।

'इरैमणिमुडि नहीं री, इरैमुडिमणि कहो।'

'इरैमणिमुडि'

'फिर गलत कहा? देवशिखामणि का तमिल पर्याय है, यह नाम दैव' यानी इरै, शिखा यानि कि मुडि मणि-यानी मणि।'

'हटो बाऊ, हमसे नहीं होगा'

वे हँसते हुए बाहर आए। इरैमुडिमणि ठीक उसी वक्त पहुँच गए।

'नमस्कार, विश्वेश्वर जी।'

'कौन? दैवशिखामणि? आओ ...।'

'कल आया था, बिटिया ने बताया था कि तुम भूमिनाथपुरम गए हो।'

काले बालों की शिखा माथे पर भभूत, धोती, उत्तरीय और गले में रुद्राक्ष पहने वैदिक पंडित के साथ लंबी घनी मूंछों और