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४६ :: तुलसी चौरा
 


एक वधू को दिया जाने वाला आशीष ही अनजाने में दोहरा दिया था। उन्हें लगा वे चाह कर भी उसका तिरस्कार नहीं कर सकते। जाने क्यों, उनका मन ही उनके खिलाफ होने लगा था। कमली ने बसन्ती को गले लगा लिया। वेणु काका ने रवि को और बसन्ती ने कमली को हार पहनाये। 'वेलकम टु शंकरमंगलम' कहते हुए वेणु काका ने हाथ आगे बढ़ाया।

'हैंड शेकिंग ईज नॉट एन इंडियन कस्टम' कहते हुए कमली ने हाथ जोड़ दिए। रवि ने पार्वती और कुमार परिचय करवाया।' पार्वती की पीठ थपथपाते हुए कमली ने तमिल में ही वार्तालाप प्रारम्भ किया। कुमार की पढ़ाई के विषय में, उससे कुछ सवाल किए। लगा, रवि ने उसे सब कुछ पहले से ही सिखा-पढ़ा दिया है। वह क्षणांश के लिए भी नहीं हिचकी।

कमली ने वहाँ अजनबियों की सरह व्यवहार नहीं किया। लगा, जैसे इस परिवार को वह वर्षों से जानती रही हो। स्टेशन के प्लैट- फार्म पर एक छोटी भीड़ इकट्ठी हो गयी। यूँ भी रंगरूप या वेश- भूषा की भिन्नता थोड़ी भी नजर आ जाए, लोग घूरते हैं। भारतीय गांवों की यह मानसिकता आम है। हरेक को, हर वक्त समझने देखने की जिज्ञासा और उसके लिए पर्याप्त वक्त दोनों ही उनके पास हैं। गांव की जिज्ञासाओं का अंत नहीं।

शंकरमंगलम रेलवे स्टेशन पर यह बात साफ पकड़ में आ गयी, पिछले पचीस वर्षों से 'बड़े' वेचने वाले सुब्बा राव, अखबार वाला चिन्नैया, फल वाला वरदन, सभी उस भीड़ में शामिल थे। सुब्बा राव से तो इस रूट पर अन्सर जाने वाले अधिकांश यात्री इस कदर परिचित थे कि उनकी आवाज से ही स्टेशन का नाम भांप लेते।

पूरी भीड़ में सुब्बाराव को देखकर रवि ने उसका कुशल क्षेम पूछ लिया। सुब्बा राव की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।