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५० :: तुलसी चौरा
 


अतिरिक्त सुविधा की कोई आवश्यकता नहीं है।'

'एस, आयम टायर्ड आफ लक्सरीज। धन प्रधान जीवन से भी ऊब गई हैं।' कमली भी रवि का समर्थन करने लगी। फिर भी शर्माजी के आदेशानुसार उन दोनों का सामान ऊपर वाले कमरे में पहुँचाया गया। कुमार और पार्वती ने छुट्टी ले रखी थी। बसन्ती भी साथ ही बनी रही।

'इतना सब क्यों कर डाला बाजी? मैंने तो आपको लिखा ही नहीं था। कमली बहुत लचीले स्वभाव की है। सुविधानुसार अपने को दाल सकती है' 'कुछ भी हो, आखिर सभ्यता भी तो कोई चीज है। मुझसे जो बन पड़ा मैंने कर दिया। वेणु काका और बसंती ने भी कहीं-कहीं सुझाव दिए।'

वे लोग ऊपर बने कमरे में रखी कुर्सियों पर बैठे थे।

'बाऊ जी भुमिनाथपुरम गए हैं। दोपहर तक लौट आएँगे। तुम आते वक्त सुरेश से मिले थे? कुछ कहलाया है उसने?'

'न, पर यूनेस्को के दफ्तर में फोन जरूर किया था। पता लगा…… सुरेश जिनेदा गया है। लौटने में हपता लग जायेगा।'

पार्वती नये खरीदे गये हैं और प्यालों में कॉफी ले आयी। रवि ने महसूस किया कि बाऊ जी ने बहुत ही मुश्किल से एक-एक कर चीजें जुटाई हैं।' आज तक घर पर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन कभी नहीं आये। पीतल या कांसे के गिलास में ही कॉफी पी जाती थी। यह परिवर्तन किसके लिए हो सकता है? उसके लिए या फिर कमली के लिये! उसे लगा कमली के आगमन ने इस गाँव के पुराने घर को बहुत अधिक प्रभावित किया है।

कॉफी पी चुकने के बाद कमलो को घर और बगीचा घुमाने ले गया। पार्वती भी उनके साथ हो ली। कुमार किसी खरीददारी के लिये दुकान गया हुआ था।

ऊपर के कमरे में बाप-बेटे अकेले छूट गए थे। शर्मा जी ने ही बात