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तुलसी चौरा :: ५१
 


शुरू की, 'यह कोई महल तो है नहीं, कि दिलाने को कुछ हो। बसन्ती बता रही थी कि वह करोड़पति की बेटी है।'

'महल हो या झोपड़ी। मुझसे जुड़ी हर चीज से उसे प्यार है। भारत, भारतीय संस्कृति, भारतीय गाँव, गाँव का जीवन―कमली को इन सबसे बहुत प्यार है।'

'तुम्हारी अम्मा को मैंने पूरी बात अभी नहीं बताई है। तुम्हारा दूसरा पत्र ही उसे पढ़वा दिया था। चित्र को देखकर पूछने लगी कि क्या यह भारत घूमने आ रही है? मैंने भी हामी भर दी। बस! न उसने आगे कुछ पूछा, न मैंने बताया।'

'आपने गलत किया जो उन्हें नहीं बताया। बात को छिपाने की कला हम भारतीय जाने कितनी पीढ़ियों से पालते चले आ रहे हैं। यही तो सारी समस्याओं की जड़ है।'

'तुम्हारी माँ से ही नहीं, मैंने तो यह बात अभी किसी को नहीं बताई है। वेणु काका और बसन्ती को यह बात पहले से ही मालूम है। और अब मैं जान गया हूँ, बस।'

'ऐसे गाँव में बात को सीधी तरह से कह देना ही अच्छा होता है, बाऊ। अनुमान पर छोड़ देना बहुत खतरनाक होता है।'

'तुम पता नहीं, फंसे कह रहे हो? मेरी दो हिम्मत हो नहीं पड़ती। तुम्हारी अम्मा को बताते ही डर लग रहा है। दूसरों की तो बात ही छोड़ दो। तुम स्वयं सब जानते-समझते हो। तुम्हें समझाने की जरूरत नहीं। जब से श्रीमठ का उत्तरदायित्व मुझे दिया गया है, पता है गाँव में मेरे कितने विरोधी हो गए हैं।

'विरोध से भयभीत हो जाएँ, तो फिर क्या विरोध खत्म हो जाएगा? हमें तो डटकर सामना करना चाहिए। हमने कोई गलती तो की नहीं, फिर हमें किस बात का भय है?"

'वह सब तो ठीक है, बेटे। इसके बारे में फिर बातें करेंगे! तुम पहले अपनी अम्मा से मिल लो। उसने तो लगता है, तुमसे ठीक से बातें