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तुलसी चौरा :: ६५
 

भारी लो :

उस गोरी युवती को तमिल में बातें करते देख काकाजी को आश्चर्य होने लगा। काकाजी ने पुरी जिंदगी में कभी अपनी को नहीं बुना था। बसंती के कलाक्षी को बुम करने के लिहाज में टेकिर चला दिया जा : कमली के कान में फुसफुसाई, 'दूर ही रखना इस कार को इसमा कबर बनने का है। चमड़ा छु जाए तो कार सवार कर।'

काकी शरमाई भी अपने ही भाएं मीनों को सुन रही थी। कमली, एक छात्रा बोलर हाथ बांधेनु मात्र से उनके चेहरे को निहार रही थी। कैसी मोहक मुना थी, उसकी आखों में

सड़क पर कार के समाने आज आयी। अगले ही क्षण बेगु काका का स्वर और धारपर लेटे मंदिर शमी का स्वर भी सुनाई दिया।

'बाऊ जी, पडोसाले हाँय गए थे। अभोनीटे है। शायद!' बसंती बाहर चली गयी।

'क्यों पसंती? बाह्य और आंतरिक मामले कैसे हैं। कोई इंप्रूवमेंट?'

बसंनो आशय समर गयी।

'आऊजी' कल्चरल ज' का काम चल रहा है। काको ने अम्मान का गोत माया, कमला ने इसे रिकार्ड कर लिया और दुवारा काकी को सुनका की। काकी को अच्छा लग रहा है, कि विदेशी युवती इन बातों से तचि ले रही है। पर···।'

पर क्या?

'कमल और राव के संबंधों की बात: यदि वे जान जाएँ तो पता. नहीं उनका साथै या नहीं।'

'रिश्तों को सुनियाद हैं, पारस्परिक दिवानाबही डिप्लोमेसी हैं।' बेणुकामा मुस्कराये।