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ज्ञानयोग

ression)*के नियम से बढ़ेगी। जंगली मनुष्य समाज के सम्बन्ध में अधिक नहीं जानता। किन्तु हम उन्नतिशील लोग जानते है कि हम जितन ही उन्नत होगे, हमारी सुख और दुःख के अनुभव करने की शक्ति उतनी ही तीव्र होगी। हममे से तीन चौथाई मनुष्य जन्म से ही जो पागल रहते है यह प्रायः सभी जानते है। यही माया है।

अतएव, हम देखते है कि माया संसार-रहस्य की व्याख्या करने के निमित्त कोई विशेष मतवाद नहीं है। संसार में घटनाये जिस प्रकार होती रही हैं, माया उन्हीं का वर्णन मात्र है। विरुद्ध भाव ही हमारे अस्तित्व की भित्ति है; सर्वत्र इन्हीं भयानक विरुद्ध भावों के बीच में से होकर हम चलते हैं। जहाँ मगल है वहीं अमगल रहता है। जहाँ अमंगल है वहीं मंगल है। जहाँ जीवन है मृत्यु वहीं छाया की भाँति उसका अनुसरण कर रही है। जो हँस रहा है उसीको रोना पड़ेगा; जो रो रहा है वह भी हँसेगा। यह क्रम बदल नहीं सकता। हम लोग अवश्य ही ऐसे स्थान की कल्पना कर सकते है जहाँ केवल मड्गल ही रहेगा, अमड्गल रहेगा नहीं; जहाँ हम केवल हँसेंगे, रोयेगे नहीं। किन्तु जब तक ये सब कारण समान रूप से विद्यमान हैं तब तक इस प्रकार का संघटन स्वयं ही असम्भव है। जहाँ हमें हँसाने की शक्ति विद्यमान है वहीं रुलाने की भी शक्ति प्रच्छन्न रूप से विद्यमान है; जहाँ सुख उत्पन्न करने वाली शक्ति विद्यमान है दुःख देने वाली शक्ति भी वही छिपी हुई है।


*समयुक्तान्तर श्रेणी नियम जैसे ३।५।७।९ इत्यादि, यहाँ पर प्रत्येक परवर्ती अपने पूर्ववर्ती अङ्क से दो दो अधिक है। समगुणितान्तर जैसे ३।६।१२।२४ इत्यादि यहाँ पर प्रत्येक परवर्ती अङ्क अपने पूर्ववर्ती अड्डू का दुगुना है।