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अमरत्व

प्रकाशित हो जायगा। एक सरल उदाहरण से यह बात भली प्रकार समझ में आ जायगी। मान लीजिये आप खूब एकाग्र होकर मेरी बात सुन रहे है और इसी समय एक मच्छर आपकी नाक पर काट रहा है, किन्तु आप मेरी बात सुनने में इतने तन्मय है कि उसका काटना आपको अनुभव नहीं होता। ऐसा क्यों? मच्छर आपके चमडे को काट रहा है; उस स्थान पर कितने ही स्नायु है, और ये स्नायु इस संवाद को मस्तिष्क के पास पहुँचा भी रही है; इसका चित्र भी मस्तिष्क में मौजूद है; किन्तु मन दूसरी ओर लगा है इसलिये वह प्रतिक्रिया नहीं करता, अतएव आप उसके काटने का अनुभव नहीं करते। हमारे सामने एक नया चित्र आया किन्तु मन ने प्रतिक्रिया नहीं की-ऐसा होने पर हम उसे अनुभव नहीं कर सकते, किन्तु प्रतिक्रिया होते ही उसका ज्ञान होगा और तभी हम देखेंगे, सुनेगे और अनुभव आदि करने में समर्थ होगे। इस प्रतिक्रिया के साथ साथ ज्ञान का प्रकाश होता है। अत- एव हमने समझ लिया कि शरीर कभी ज्ञान का प्रकाश नहीं कर सकता, कारण, हम देखते हैं कि जिस समय मनोयोग नहीं रहता उस समय हम अनुभव नहीं करते। ऐसी घटनाये सुनी गई है कि किसी किसी विशेष अवस्या में कोई कोई व्यक्ति जो भाषा उसने कभी नहीं सीखी है वह बोलने में समर्थ हुआ है। बाद में खोजने पर पता लगा है कि वह व्यक्ति कमी वचपन में ऐसी जाति में रहा है जो उस भाषा को बोलती थी, और वही संस्कार उसके मस्तिष्क में वर्तमान था। वह सब वहाँ पर सञ्चित था, बाद में किसी कारण से उसके मन में प्रतिक्रिया हुई और तभी ज्ञान आ गया और वह व्यक्ति उस भाषा को बोलने में समर्थ हुआ। इसीसे फिर सिद्ध होता है कि केवल