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यह गली बिकाऊ नहीं/109
 


मालूम हुआ कि वह जहाज़ कोत्तपार, कुवान्तान, क्वालालम्पुर, ईप्पो आदि जगहों में उतरने के बाद अन्त में पिनांग को जाएगा।

धीरे-धीरे अँधेरा छा रहा था। शाम के झुटपुटे में वह हवाई अड्डा और चारों ओर के हरे-भरे पर्वत-प्रदेश बहुत सुन्दर दिखायी दिये ।

जहाँ देखो, मरकत की हरीतिमा छायी थी । पहाड़ों पर रबर के बगीचे ऐसे दिखायी दे रहे थे, मानो 'कलिंग' करके केश कुन्तल-से बनवाये गये हों। केले और रम्बुत्तान के पेड़ झुंड-के-झुंड खड़े थे। वहाँ को पर्वतस्थली वनस्थली जैसी थी।

रम्वुत्तान, डोरियान जैसे मलेशियाई फलों के बारे में स्वदेश में ही मुत्तुकुमरन् ने चेट्टिनाडु के एक मित्र के मुंह से सुन रखा था।

एक मलाय स्त्री, जो उस हवाई जहाज की होस्टस बी, हाथ में लिये केबिन से निकलकर आखिरी सिरे तक आती-जाती रही । उसका डील-डौल ऐसा था कि पीठ और छाती का फ़र्क ही मालूम नहीं पड़ता था। लेकिन उसकी आँखें ऐसी सुन्दर थीं, मानो सफ़ेद मखमल पर काले जामुन लुढ़क गये हों।

हवाई जहाज़ उस अड्डे से रवाना हुआ तो सिर्फ गोपाल उनके पास आया और बोला, "माधवी ! तुम्हारा वर्ताव अगर तुम्हें ठीक लगे तो ठीक है।"

माधवी ने आँखें पोंछी और सीट की बेल्ट खोलकर उठी। इस बार मुत्तुकूमरन् से कुछ कहे और उसका मुंह देखे बिना अब्दुल्ला की सीट की ओर बढ़ी। मुत्तुकुमरन् अपने को अकेला महसूस न करे—इस विचार से गोपाल माधवी. की सीट पर बैठकर उससे बातें करने लगा।

"बात यह है उस्ताद ! अब्दुल्ला जरा शौकीन किस्म का आदमी है। काफ़ी बड़ा रईस। एक तारिका के पास बैठने-बोलने को लालायित है। औरतों का दीवाना भी है। उसके पास बैठकर जरा देर बातचीत करने में क्या बुराई है ? उसी की 'कांट्रेक्ट' पर ही तो हम इस देश में आये हैं। ये बातें माधवी की समझ में नहीं आतीं। ऐसा तो नहीं कि वह बिलकुल नहीं समझती । वह बड़ी होशियार है और अक्लमंद भी । आँखों के इशारे समझनेवाली है। वैसे उस्ताद तुम्हारे आने के बाद वह एकदम बदल गयी है। जिद पकड़ लेना, गुस्सा उतारना, उदासीनता बरतनान जाने क्या-क्या बदलाव आ गये?"

"यह सब मेरी ही वजह से आये हैं न?"

"ऐसा कैसे कहूँ ? फिर तुम्हारे गुस्से का कौन सामना करे?"

"तो फिर किस मतलब से तुमने यह बताया गोपाल ?"

मुत्तुकुमरन् की आवाज को ऊँचा पड़ते देखकर गोपाल दिल-ही-दिल में डर गया। मुत्तुकुसरन् आग उगलते हुए बोला-"औरत औरत है। कोई व्यापार की

चीज़ नहीं। उसकी इज्जत का ख्याल रखना चाहिए। तुम्हारा यह काम मुझे

कलाकार का काम नहीं लगता। ऐसे काम करनेवाले तो दूसरे होते हैं । मुझे इतना