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यह गली बिकाऊ नहीं/121
 

फूल के इर्द-गिर्द भौंरा । उधर मुत्तुकुमरन् सदैव माधवी के साथ रहकर उनके लिए विघ्न बना फिर रहा था। दिन पर दिन उसके प्रति नफरत बढ़ती जा रही थी। मुत्तुकुमरन् कुछ ऐसा प्रतिद्वन्द्वी निकला कि अब्दुल्ला को माधवी के पास 'फटकने या बोलने-चालने नहीं देता था।

प्रथम दिन का नाटक बड़ा सफल रहा । उस रात को अब्दुल्ला और मुत्तुकुमरन् में आमने-सामने ही फिर झड़प हो गयी। अच्छी रकम वसूल हो जाने और दर्शकों की भरी-पूरी भीड़ हो जाने के कारण गोपाल पर अब्दुल्ला की बड़ी धाक जम गयी कि इन्हीं की बदौलत यह सबकुछ हुआ है।

नाटक पूरा होते-होते रात के ग्यारह बज गए थे। नाटक के अंत में, सबको 'मंच पर बुलाकर माला पहनाकर अब्दुल्ला ने सम्मान किया। पर जान-बूझकर 'मुत्तुकुमरन् को छोड़ दिया। यद्यपि मुत्तुकुमरन को भूलने जैसी कोई बात नहीं थी, फिर भी उन्होंने ऐसा अभिनय किया कि उस समय जैसे उसका स्मरण ही नहीं रहा । गोपाल को इसकी याद थी। पर वह यों चुप रह गया, मानो अब्दुल्ला के कामों में दखल देने से डरता हो । पर माधवी के क्षोभ का कोई पारावार नहीं था । उसे लगा कि ये सभी मिलकर कोई साजिश कर रहे हैं।

नाटक के बाद, पिनांग के एक धनी-मानी व्यक्ति के यहाँ उनके रात के भोजन का प्रबन्ध था। उन्हें ले जाने के लिए मेजबान स्वयं आये थे।

मंच पर हुए उस अनादर से क्षुब्ध माधवी ने अपनी एक सह-अभिनेत्री के द्वारा मुत्तुकुमरन् को 'ग्रीन रूम' आने के लिए कहला भेजा। वह भी केरल की तरफ को ही थी।

नीचे, मंच के नीचे खड़े मुत्तुकुमरन् के पास आकर उसने कहा कि माधवी ने चुलाया है । वह अनसुना-सा खड़ा रहा तो वह बोली, "क्या मैं जाऊँ ?"

उसने सिर हिलाकर 'हाँ' का इशारा किया तो वह चली गयी। थोड़ी देर की मुहलत देकर वह 'ग्रीन रूम' में गया तो माधबी ने उसके निकट आकर भरे-गले से कहा, "यहाँ का यह अन्याय मैं नहीं सह सकती। हमें दावत में नहीं जाना चाहिए।"

"स्वाभिमान अलग है और ओछापन अलग है। उनकी तरह हमें ओछा व्यवहार नहीं करना चाहिए । माधवी, ऐसी बातों में मैं बड़ा स्वाभिमानी आदमी हूँ। कोई भी सच्चा कलाकार स्वाभिमानी ही होता है। लेकिन वह आत्मसम्मान सार्थक होना चाहिए। न कि घटिया क्रोध । नये देश में, नये शहर में हम आए हैं। हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि हमारा बड़प्पन बना रहे और बढ़ता रहे !"

"यह तो ठीक है ! पर दूसरे लोग हमारे साथ बड़प्पन का व्यवहार कहाँ करते ? ओछों का-सा घटिया व्यवहार नहीं कर रहे ?"

"परवाह नहीं ! हमें अपने बड़प्पन के व्यवहार से च्युत नहीं होना चाहिए !"