पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/१४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
146 / यह गली बिकाऊ नहीं
 

"इतनी रात गये अभी घर कैसे जाओगी भला! रात को यहीं सोकर सवेरे चली जाना!" गोपाल माधवी से बोला। लेकिन वह हिचकिचायी।

"तुम बहुत बदल गयी हो। पहले जैसी नहीं रही।" माधवी को हिचकते देखकर गोपाल ने हंसते हुए फिर कहा।

माधवी ने कोई जवाब नहीं दिया। गोपाल हँसता हुआ अन्दर चला गया।

"वह क्यों हँस रहा है?" मुत्तुकुमरन् ने माधवी से पूछा।

"उनकी निगाह में मैं बदल गयी न? इसलिए!"

"तुम घर जाओगी या यहीं ठहरोगी? देर तो बहुत हो गयी!"

ठहर सकती हूँँ। अगर आप अपने 'आउट हाउस' में किसी कोने में मुझे ठहरने की थोड़ी-सी जगह दें तो! इस बंगले में और किसी दुसरी जगह मैं नहीं ठहर सकती। यह एक भूत-बंगला है। कल सिंगापुर में आपने नरक की यातनाएँँ दिखायी थीं न! उन्हें फिर याद कीजिये तो बात समझ में आये।"

"आउट हाउस में तो एक ही खाट है! फ़र्श तो बड़ी ठंडी होगी।"

"परवाह नहीं! आप अपने चरण में शरण देकर नीचे-निरी फ़र्श पर भी जगह दें तो वही बहुत है!"

वह हामी भरकर बढ़ा तो वह उसके पीछे-पीछे चलती आयी।

उनके सिंगापुर से लौटने की बात का पहले ही पता हो जाने से नायर छोकरे ने 'आउट हाउस' को झाड़-पोंछकर साफ़ कर दिया था। मटके में ताजा पानी भरकर रखा था। गद्दे-तकिये के गिलाफ़ बदलकर बिछौने ठीक-ठाक सहेज रखा था।

उनके साथ आये हुए माधवी और मुत्तुकुमरन् के अलग-अलग सूट-केसों को ड्राइवर पहले ही 'आउट हाउस' के द्वार पर छोड़ गया था। दोनों ने उन्हें उठाकर अंदर रखा।

चाहे गोपाल कुछ भी सोच ले, माधवी ने निश्चय कर लिया था कि वह आज मुत्तुकुमरन् के साथ 'आउट हाउस में रहेगी।

मुत्तुकुमरन् ने बिछावन और तकिया निकालकर माधवी को दिया और स्वयं खाट के निरे गद्दे पर लेट गया ।

माधवी वह बिछावन नीचे बिछाकर लेट गयी।

"देखिये, यहाँ तो एक ही तकिया है। मुझे तकिये की जरूरत नहीं। आप लीजिए"― माधवी थोड़ी देर बाद यह कहते हुए उठी और तकिया मुत्तकुमरन् को देने आगे बढ़ी। मुत्तुकुमरन् को तबतक हल्की-सी नींद आ लगी थी। उसी समय टेलीफ़ोन की घंटी भी बज उठी। माधवी सोचने लगी कि वह चोंगा उठाये कि नहीं! मुत्तुकुमरन् बिस्तर पर उठ बैठा। उसने चोंगा उठाया तो दूसरे सिरे से गोपाल कुछ कह रहा था।