पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
28/यह गली बिकाऊ नहीं
 

बहुत अधिक पैसा है ?"

"नहीं-नहीं, ऐसा मत कहो । यों ही जेब-खर्च के लिए रखना अपने पास !" "कोरा काग़ज़ हो तो उसपर कविता लिखी जा सकती है। यह तो छपे हुए रुपयों का नोट है ! यह मेरे किस काम का ?"

मुत्तुकुमरन् की बात सुनकर दूसरी ओर से गोपाल खिलखिलाकर हँस पड़ा और बातें पूरी कर शूटिंग के लिए चल पड़ा।

मुत्तुकुमरन् के अहंकार से परिचित होने के कारण ही गोपाल ने लिहाज़ की दृष्टि से भी स्टूडियो देखने या शूटिंग देखने को उसे नहीं बुलाया । वह यह भी जानता था कि बाहर से पहली बार मद्रास आनेवाले लोग स्टूडियो देखने के प्रति जितना उत्साह दिखाते हैं, उतना मुत्तुकुमरन् नहीं दिखायेगा।

दोपहर के बारह बजने के पहले माधवी ने चार-पाँच बार, बात बेबात पर मुत्तुकुमरन् को फ़ोन कर दिया था।

मदुरै रहते हुए मुत्तुकुमरन् इस बात से वाकिफ नहीं था कि टेलीफ़ोन इतना सुविधाजनक और आवश्यक साधन है । आधुनिक जीवन में मद्रास जैसे शहर में अब उसे भली-भाँति पता चल गया कि यह कितना जरूरी साधन है। जीवन की रफ्तार में भी मदुरै और मद्रास के बीच बड़ा फ़र्क था।

पगडंडी पर चलने का आदी, एकाएक कारों और लारियों से खचाखच भरे महानगरके चौराहे पर आ जाए तो जैसे लड़खड़ा जाएगा वैसे ही उसे अपने को सँभालना पड़ रहा था। आमने-सामने बातें करते हुए जो स्वाभाविक बोली बोली जाती है, रोष या हँसी-खुशी प्रकट की जाती है, टेलीफ़ोन में उसे वैसी बात करना नहीं आया । तस्वीर खिंचवाते हुए जो कृत्रिमता आ जाती है, टेलिफ़ोन में बातें करते हुए भी वैसी ही कृत्रिमता आ जाती थी। लेकिन गोपाल या माधवी के बोलने में बड़ी स्वाभाविकता नजर आयी। उनकी तरह बोलने का उसका मन कर रहा था। अनेक बातों में वह गर्व से चूर था तो क्या ! मद्रास के वातावरण में कुछ बातों में उसका गर्व चूर हो रहा था।

काफी सोच-विचार के बाद भी वह यह निर्णय कर नहीं पाया कि क्या लिखा जाए ? नहाकर कपड़ा बदला और दोपहर का भोजन भी समाप्त किया।

गोपाल ने स्टूडियो से फ़ोन किया, "उस्ताद ! तीन बजे तैयार रहो । हमारे नये नाटक के संबंध में बात करने के लिए शाम को चार-साढ़े चार बजे मैंने सारे प्रेस रिपोर्टरों को बुलाया है । एक छोटी-सी चाय-पार्टी भी है। बाद में, सभी तुमसे नये नाटक के विषय में अनौपचारिक बात करेंगे। कुछ सवाल भी करेंगे। तुम्ही को जवाब देना होगा। समझे ?"

"अभी नाटक तैयार ही नहीं हुआ है। उसके पहले इन सब बातों की क्या जरूरत है ?