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यह गली बिकाऊ नहीं/37
 


सवा दस बजे नायर लड़का एक खाकी पोशाक वाले के साथ अन्दर आया, जो नया टाइपराइटर लेकर आया था। उसके जाने के बाद माधवी ने मशीन में नया फीता लगाते हुए कहा, "स्क्रिप्ट दीजिये तो मैं टाइप करना शुरू कर दूँ !"

तभी स्टूडियो की ओर रवाना होते हुए गोपाल आया और खुश होकर बोला, "टाइपराइटर तैयार ! तुम्हारी कथा-नायिका तैयार ! अपना नाटक जल्दी तैयार कर दो, मेरे यार !"

"पलला दृश्य ही बहुत अच्छा बन पड़ा है । नाटक की सफलता की निशानी है यह।"

"शाबाश ! जल्दी लिखो । अब मैं स्टूडियो जा रहा हूँ । जाते हुए मैं यह बताने आया था कि शाम को मिलेंगे !" कहकर गोपाल माधवी की ओर मुड़ा और बोला, . "वन प्लस टू, या श्री कॉपी निकालो। बाद में ज़रूरत पड़ी तो और निकाल लेंगे ! इनके नाटक का जल्दी तैयार होना, तुम्हारे प्रोत्साहन पर निर्भर है।"

माधवी ने मुस्कुराते हुए ऐसा सिर हिलाया, मानो अपनी ओर से कोई कसर नहीं उठा रखेगी।

मुत्तुकुमरन् ने जितना कुछ लिखा था, उसे टाइप करने के लिए माधवी के हाथ दे दिया। माधबी पांडुलिपि को उलटते हुए उसकी लिखाई की तारीफ़ करने लगी, "आपके अक्षर तो मोती की तरह सुन्दर हैं।"

"सुन्दर क्यों नहीं होंगे ? बचपन में कितने यत्न से लिखना सीखा है, मालूम है ?" -मुत्तु कुमरन् आत्माभिनान से बोला । "आपका यह आत्माभिमान भी मुझे बहुत पसंद है !"—माधवी ने एक और टाँका लगाया।

"दुनिया में केवल कष्ट भोगने के लिए पैदा होनेवाले आखिरी कवि तक के लिए अपना कहने को कुछ है तो वह उसका आत्माभिमान ही है !"

"कई लोगों में आत्माभिमान होता है। पर वह विरलों को ही शोभा देता हैं।"

"कुलभूषण, विद्याभूषण की तरह यशोभूषण भी होता है !"

"यशोभूषण ! बड़ा प्यारा शब्द है। यश जिसका भूषण है-यही इसका मतलब है न?"

दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यश जिसका भूषण बनकर स्वयं यशस्वी होता है ।" मुत्तुकुमरन् ने अपना पांडित्य दर्शाया ।

माधवी ने एक बार उसकी पांडुलिपि को बड़े गौर से पढ़ा और मुत्तुकुमरन की प्रशंसा करती हुई बोली, "बहुत बढ़िया बना है । नर्तकी के मुख से गवाने के लिए जो गाना लिखा गया है वह तो और बढ़िया है।"

"वह गाना अपने मधुर कंठ से एक बार गाओ तो कान भरकर सुनूं