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8/यह गली बिकाऊ नहीं
 

आयी सज-धज के रे जोगिनिया।
सुन्दर रूप लगाये अगिनिया।"

'कनक लता-सी कामिनी, काहे को कटि छीन?' पूछने वाले आलम कवि बनने की कोशिश में मुत्तुकुमरन् निघंटु उलटने-पलटने लगा। प्रास-अनुप्रास तो मिल गये। नाटक कंपनी में काम करते हुए जब चाहो, जैसा चाहो, निघंटु की मदद से वह अनायास फटाफट गीत रच लेता था। पर आज न जाने क्यों, उसका मन उचाट-सा हुआ जा रहा था। बार-बार उसके मन में यही विचार सिर उठा रहा था कि मैं जीविका की खोज में मद्रास आ तो गया, पर जीवन चले कैसे? इसलिए गीत रचने का उत्साह नहीं रहा।

लेकिन उस युवती की मनमोहिनी मूरत उसके लिए मीठी खुराक़ बन गयी और वह उसके रसास्वादन में लगा रहा। पर बीच-बीच में उसका मन मदुरै और दिण्डुक्कळ की ओर निकल भागा। इसलिए कि वहाँ ऐसी सुघड़ लड़कियाँ उसके देखने में नहीं आयीं। इसकी क्या वजह हो सकती है? वजह ढूँढ़ते हुए उसके मन में यह विचार आया कि खान-पान के बारे में शहर की लड़कियाँ जितनी सतर्क रहती हैं, उतनी देहाती लड़कियाँ नहीं। नगर की लड़कियाँ बन-ठनकर अपने को दर्शाने और दूसरों को आकर्षित करने में जितनी रुचि दिखाती हैं, वह देहाती लड़कियों में या तो नहीं है या वैसी सुविधा नहीं है। मद्रास में एक माँ को भी अपने को चार-पाँच बच्चों की माँ कहने के गौरव से बढ़कर अपने को एक युवती जताने का ध्यान ही अधिक है। देहात की वह दशा नहीं है। एक स्त्री को माँ मानते हुए मन में विकार उत्पन्न नहीं होता। युवती मानते हुए तो मन में विकार की संभावना ही अधिक है। गर्भिणी स्त्रियों को जहाँ भी देखें, जिस सूरत में भी देखें, काम-भावना कभी सिर नहीं उठाती।

इस तरह की ख़्याम-खयाली और दिन के भोजन के बाद सोने का उपक्रम करते हुए भी वह सो नहीं सका। इसलिए लॉज के पास के म्यूज़ियम, आर्ट गैलरी, केनिमारा पुस्तकालय आदि देख आने के विचार से वह निकल पड़ा। वर्षा अब ज़रा थमकर बूँदा-बूँदी का रूप धारण कर चुकी थी। पेन्थियन रोड पर चलते हुए उसे कुछेक गर्भिणी स्त्रियाँ दीख पड़ीं तो उसे दोपहर का वह विचार ताज़ा हो आया। उनमें से एकाध का चेहरा देखने पर उसे लगा कि मद्रास भोग-भूमि है। कुछेक के चेहरे तो यह बता रहे थे, मद्रास यातना-भूमि है। कुछ स्थान सुन्दर और कृत्रिम से दीख पड़े तो कुछ स्थान भद्दे, घृणित और बेबसी और तकलीफ़ से भरे। इसलिए वह मद्रास के सच्चे स्वरूप या उसके सामान्य चरित्र का पता नहीं पा सका।

म्यूज़ियम थियेटर की गोलाकार छोटी सुन्दर इमारत और आर्ट-गैलरी की मुग़लकालीन शोभा देखकर वह दंग रह गया। म्यूज़ियम को देखने में उसे पूरा एक