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98/यह गली बिकाऊ नहीं
 

धोकर, कपड़े बदलकर वह चलने को तैयार हो गयी।

सिंगापुर जाने में कुछ ही दिन बाकी रह गये थे। उसके पहले सारा प्रबन्ध कर लेना था । सीन-सेटिंग जैसे भारी सामान, जो हवाई जहाज से नहीं लिये जा सकते थे, उन्हें साथ लेकर, दो दिनों में दस-पन्द्रह आदमी समुद्री जहाज़ पर जाने वाले थे। हवाई जहाज पर हल्के-फुल्के सामान ही लिये जाने की बात थी । अतः संभव था कि जरूरत से ज्यादा के कपड़े-लत्ते और साड़ियाँ भी जहाज के जरिये ही भेजे जाएँ । इसलिए उसने गोपाल की बात न टालकर जल्दी कपड़े की दूकान हो आने की बात मान ली थी।

गोपाल की नाटक-मंडली को मुत्तुकुमरन् के लिखे हुए नये नाटक के अलावा मलेशिया में एक-दो अन्य सामाजिक नाटक भी मंचित करने की योजना थी। उन नाटकों में कभी बहुत पहले गोपाल और माधवी ने भूमिका की थी। उनकी पुनरा- वृत्ति के लिए भी उन्हें तैयार रहना था ।

हालाँकि अब्दुल्ला ने 'प्रेम एक नर्तकी का'-इसी ऐतिहासिक नाटक के लिए अनुबन्ध किया था, फिर भी, विदेश के नगरों में लगातार इसी नाटक के खेलने में कठिनाइयाँ संभब थीं। इस विचार से बीच-बीच में दूसरे नाटक भी सम्मिलित किये गये। सामाजिक और ऐतिहासिक दोनों प्रकार के नाटकों में माधवी को ही बारी-बारी से नायिका की भूमिका अदा करनी थी। इसलिए उन पात्रों के अनुरूप आधुनिकतम रेशमी साड़ियाँ लेनी थीं । ग्यारह बजे जाने पर भी साड़ियाँ चुनते-चुनते दोपहर का एक तो बज ही जायेगा।

माधवी ने सोचा कि बोग रोड के बँगले पर जाकर, मुत्तुकुमरन् को भी साथ ले जाये तो अच्छा रहे। इसके साथ ही वह इस सोच में पड़ गयी कि मुत्तुकुमरन् कहीं इनकार कर दे तो क्या हो ?

"मालिक ने आपको कपड़े की दुकान पर ले जाने को कहा है।" कहते हुए ड्राइवर सवा दस बजे के करीब गाड़ी के साथ आ गया।

उसके कार में बैठते ही ड्राइवर ने पूछा, “सीधे पांडिं बाजार चलूं ?"

"नहीं ! पहले बँगले पर चलो। आउट हाउस से नाटककार को भी साथ ले जायेंगे।" माधवी ने कहा तो कार बोग रोड की तरफ़ बढ़ी।

उस समय मुत्तुकुमरन् 'आउट हाउस' के बरामदे में बैठकर उस दिन का समाचार-पढ़ रहा था। माधवी कार से उतरकर उसके सामने जा खड़ी हुई तो उसने समाचार-पत्र से सिर उठाकर देखा और पूछा, 'बड़ी खुशबू आ रही है। यह अब्दुल्ला की दी हुई 'सेंट तो नहीं ?"

"अच्छा ! इस खुशबू में इतनी बड़ी तासीर हैं कि देने वाले आदमी का नाम भी बतला दे।"

"अन्यथा मैं उसका नाम कैसे ले पाता?"