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'निर्बल बहुमत' की कैसे रक्षा हो?


तो हम जानते ही हैं। उसको हम स्वीकार करलें, तो उसके अन्त में नाजीवाद को आना ही है। नाजीवाद की जरूरत महसूस की गई थी, तभी इसका जन्म हुआ। एक सारी-की-सारी कौम पर एक घोर अत्याचार लादा गया था। उसको हटाने के लिए एक बड़ी चीख-पुकार मच रही थी। इस अत्याचार का बदला लेने को हिटलर पैदा हुआ। आजकल के युद्ध का चाहे आखिरी परिणाम कुछ भी क्यों न हो, जर्मनी अपने को आगे की तरह फिर अपमानित नहीं होने देगा। मानव जाति भी ऐसे अत्याचार को दोबारा सहन नहीं करने की। मगर एक ग़लती को मिटाने के लिए, एक अत्याचार का बदला लेने के लिए हिंसा का गलत राम्ता अख्त्यार कर के, और इस हेतु से हिंसा-शास्त्र को लगभग सम्पूर्णता के दर्जेतक पहुँचाकर के हिटलर ने जर्मन प्रजा को ही नहीं, बल्कि मानव-जाति के अधिकांश को हैवान-सा बना दिया है। अभी इस क्रिया का अन्त हमने नहीं देखा, क्योंकि इसके मुकाबले में ब्रिटेन को भी जबतक वह हिंसा के पुरातन मार्ग को पकड़े बैठा है-अपने सफल रक्षण के लिए नाजी तरीके अपनाने होंगे। इस तरह हिंसा-नीति को प्रहण करने का कुदरती और अनिवार्य परिणाम यही होगा कि इन्सान और इसमें “निर्बल बहुमत" भी पा जाता है-दर्जा-ब-दर्जा अधिक पाशवी स्वभाववाला बने, क्योंकि निर्बल बहुमत को आवश्यक मात्रा में अपने रक्षकों को सहयोग देना ही होगा।

अब फर्ज कीजिए कि इसी बहुमत की अहिंसा-नीति द्वारा