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युद्ध और अहिंसा


इसलिए कहना चाहता हूँ, कि उनकी दुर्दशा से मुझे शारीरिक और मानसिक वेदना हुई है और मुझे ऐसा लगा कि इस सिल. सिले में जो विचार मेरे दिमाग में चक्कर काट रहे थे उन्हें अगर उनपर प्रगट न करूं तो वह मेरी कायरता होगी। यह तो स्पष्ट है कि छोटे राष्ट्र या तो अधिनायकों के आधीन हो जायें या उनके संरक्षण में आने के लिए तैयार रहें, नहीं तो यूरोप को शान्ति बराबर खतरे में रहेगी। यथासम्भव पूरी सद्भावना रखते हुए भी इंग्लैण्ड और फ्रांस उनकी रक्षा नहीं कर सकते। उनके हस्तक्षेप का मतलब तो ऐसा रक्तपात और विनाश ही हो सकता है जैसा पहले कभी दृष्टिगोचर नहीं हुआ। इसलिए, अगर मैं चेक होता, तो इन दोनों राष्ट्रों को अपने देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी से मुक्त कर देता। इतने पर भी मुझे जीवित तो रहना ही चाहिए। किसी राष्ट्र या व्यक्ति का आश्रित मैं नहीं बनेगा। मुझे तो पूरी स्वतंत्रता चाहिए, नहीं मैं मर जाऊँगा। हथियारों की लड़ाई में जीतने की इच्छा करना तो निरी कोरी शेखी होगी। लेकिन जो मुझे अपनी स्वतंत्रता से वंचित करे उसकी इच्छा का पालन करने से इन्कार करके उसको ताकत की अवज्ञा कर इस प्रयत्न में मैं निरस्त्र मर जाऊँ, तो वह कोरी शेखी नहीं होगी। ऐसा करने में मेरा शरीर तो नष्ट हो जायगा, लेकिन मेरी आत्मा याने मान-मर्यादा की रक्षा हो जायगी।

अभी-अभी इस अपकीर्तिकारक शांति की जो घटना घटी