पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१३४
युद्ध और अहिंसा


लोकतंत्रात्मक राष्ट्र जर्मनी को दण्ड दें और उन्हें उसके अत्याचार से मुक्त करदें? अगर वे ऐसा चाहते हैं, तो उनके दिलों में अहिंसा नहीं है। उनके अन्दर तथाकथित अहिंसा हो भी, तो वह कमजोर और असहायों की अहिंसा है।

मैंने जिस बात पर जोर दिया है वह तो यह है कि दिल से भी हिंसा निकाल दी जाय और इस महान त्याग से पैदा हुई शक्ति को काम में लाया जाय। एक आलोचक का कहना यह है कि अहिंसात्मक रूप में काम करने के लिए उसके पक्ष में लोकमत का होना जरूरी है। स्पष्टतया ऐसा लिखते हुए उनके ख़याल में निष्क्रिय प्रतिरोध ही है, जिसे कमजोरों का शस्त्र समझा जाता है। लेकिन मैंने कमजोरों के निष्क्रिय प्रतिरोध और बलवानों के अहिंसात्मक प्रतिरोध में फर्क रक्खा है। इसमें से पिछला भयंकर-से-भयंकर विरोध के बावजूद काम कर सकता है और करता है। लेकिन इसका अन्त अधिक-सेअधिक सार्वजनिक सहानुभूति के साथ होता है। यह हम जानते हैं कि अहिंसात्मक रूप में कष्ट सहन करने से संगदिल भी पसीज जाते हैं। मैं यह कहने का साहस करता हूँ कि यहूदी अगर उस आत्म-शक्ति की मदद पा सकें, जो केवल अहिंसा से प्राप्त होती है, तो हेर हिंटलर उनके ऐसे साहस के सामने, कि जैसा उन्होंने किसीके साथ पेश आने में बड़े पैमाने पर कभी नहीं देखा, सिर झका देंगे और वह इस बात को तसलीम करेंगे कि वह उनके सर्वोत्तम तूफानी सैनिकों की वीरता से भी बढ़कर है।