है इसका अर्थ यह हुआ कि हिन्दुस्तान ने कभी एक राष्ट्र के रूप में इस शक्ति को विकसित नहीं किया। इसलिए उसकी अहिंसा दुर्बल की अहिंसा है, इसीसे वह उसे नहीं मोह सकती, और उसका प्रभाव नहीं पड़ सकता। जहाँ तहाँ हम निस्य भारत की दुर्बलता का ही दर्शन किया करते हैं और संसार के सामने भारत एक ऐसी प्रजा के रूप में दिखाई देता है कि जिसका दिनदिन शोषण होता जा रहा है। यहाँ भारत की राजनीतिक पराधीनता ही बताने का हेतु नहीं है, बल्कि अहिंसक और नैतिक दृष्टि से हम अाज उतरे हुए मालूम होते हैं। आपस में बात करें तो भी हम अपने को नीचे ही देखते हैं। ऐसा मालूम होता है कि किसी भी बलवान के आगे साहस के साथ खड़े होने की शक्ति हम खो बैठे हैं। हम लोगों में ऐसी शक्ति नहीं है, यह बात हमारे दिल में घर कर गई है। जहाँ-तहाँ हम अपनी निबलता ही देखा करते हैं। यदि ऐसा न हो तो हम लोगों में हिन्दू मुसल्मान के बीच झगड़ा ही क्यों हो? आपस में तकरार ही क्यों हो? राजसत्ता के विरुद्ध लड़ाई किसलिए हो? यदि हममें सबल राष्ट्र की अहिंसा हो, तो अंग्रेज न हम लोगों के प्रति अविश्वास करें, न अपने प्राणों का हमारी तरफ से कोई भय रखें और न अपने को यहाँ विदेशी शासक के रूप में माने। भले ही राजनीति को भाषा में इच्छा हो तो हम उनकी टीका करें। कितनी ही बातों में हमारी आलोचना में सचाई होती है। किन्तु यदि एक क्षण के लिए भी पैतीस करोड़ मनुष्य अपने को एक सबल
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युद्ध और अहिंसा