पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/२१५

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२O६ युद्ध और अहिंसा कोई मनुष्य अपने हृदय में बैर रखकर केवल वणिक-बुद्धि से सामनेवाले की हिंसा के वश हो जाये तो वह सञ्चा अहिंसक नहीं कहा जा सकता । और अगर वह अपना इरादा गुप्त रखे तो दंभी भी कहा जायेगा । फिर यह भी याद रखना चाहिए कि अहिंसा का प्रयोग तो तभी हो सकता है जबउसे हिंसा का मुकाबिला करना हो । प्रतिहिंसा की जहाँ हस्ती ही नहीं है वहाँ अहिंसक रहने वाला अपनी अहिंसक निष्चेष्टता के लिए यश प्राप्त नहीं कर सकता; क्योंकि जहाँ सामने हिंसा खड़ी न हो वहाँ अहिंसा की परीक्षा कैसे हो सकती है ? ‘डोमीनियन स्टेटस' की तो बात ही अब उड़ गई है, इसलिए उससे पैदा होनेवाले मुद्दों पर चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है । हाँ, इतना कह सकते हैं कि अगर भारत ने सच्चा ‘डोमीनियन स्टेटस' प्राप्त किया होता तो साम्राज्य के अधीन रहने के बदले समान यानी संख्या बढ़ने के कारण एक बड़े भागीदार जैसा भागीदार बनता और ग्रेट ब्रिटेन की विदेशी नीति तय करने में वह प्रधान हिस्सा लेता । नेहरू-रिपोर्ट को मैंने सामान्य रूप में हृदय से स्वीकार किया है इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसके प्रत्येक शब्द को मैंने स्वीकार किया है। भावी स्वतंत्र भारत की रक्षा के लिए जो व्यवस्था होगी उस सबको मेरी सहमति होगी यह मान लेने की भी जरूरत नहीं है। भारत जिस दिन स्वतंत्र होगा