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२११ युद्ध और अहिंसा

इसलिए मुझे महसूस हूआकि सरकार के संकट के तणों में एक मनुष्य और एक नागरिक के नाते अपनी अल्प सेवा अर्पित करके मैंने अपने धर्म का पालन किया । स्वराज्य में भी प्रत्येक देशवासी से में अपने देश के प्रति ऐसे ही व्यवहार की आशा रग्बता हूँ । यदि हर समय और हर अवसर पर प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपना कानून बनाने लगे और सूचम तराजू से अपनी भावी राष्ट्रीय महासभा के प्रत्येक कार्य को तौलने लगे तो मुझे भारी दु:ख हो । मैं तो अनेक विषयों के सम्बन्ध में राष्ट्र के प्रतिनिधियों के निर्णय के आगे अपने व्यक्तिगत निर्णय को ताक में रखकर राष्ट्र की आज्ञा को सिरमाथे पर चढ़ाना पसन्द करू । केवल इन प्रतिनिधियों को चुनने में मैं विशेष सावधानी से काम लू । मैं जानता हूँ इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार से प्रजाकीय सरकार एक दिन भी नहीं चलाई जा सकती ।

    यह तो हुई उस समय के मेरे व्यवहार की मीमांसा । किन्तु आज के विषय में क्या ?
   आज मेरे सामने सारा नकशा ही बदल गया है । मुझे प्रतीत होता है कि मेरी ऑंखें खुल गई हैं। अनुभव ने मुझे अधिक समझ प्रदान की है । आज मौं वर्तमान राजतन्त्र को सम्पूर्णतः विकृत तथा या तो सुधारने या दफना देने योग्य समझता हूँ । इस विषय में मुझे तनिक भी शंका नहीं रह गई है कि उसके भीतर अपने आपको सुधारने की किंचित शक्ति