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युद्ध और अहिंसा


यह बहुत मुमकिन है कि डानज़िग को जर्मनी में मिलाने का, अगर डानज़िग-निवासी जर्मन अपने स्वतन्त्र दर्जे को छोड़ना चाहें, उनका अधिकार असन्दिग्ध हो। यह हो सकता है कि गलियारे (कोराइडर) को अपने क़ब्ज़े में करने का उनका दावा ठीक हो। पर मेरी शिकायत तो यह है कि वह एक स्वतंत्र न्यायालय के द्वारा इस दावे की जाँच क्यों नहीं होने देते? अपने दावे का पंचों से फैसला कराने की बात को अस्वीकार कर देने का यह कोई जवाब नहीं है कि ऐसे ज़रियों के द्वारा यह बात उठाई गई है जिनका इसमें स्वार्थ है, क्योंकि ठीक रास्ते पर आने की प्रार्थना तो कोई चोर भी अपने साथी चोर से कर सकता है। मैं समझता हूँ कि मैं यह कहने में कोई ग़लती नहीं करता कि हेर हिटलर अपनी माँग की एक निष्पक्ष न्यायालय द्वारा जाँच होने दें इसके लिए सारा संसार उत्सुक था। उन्होंने जो तरीक़ा इखित्यार किया है उसमें उन्हें सफलता होगई तो वह उनके दावे की न्यायोचितता का सबूत नहीं होगी। वह तो इसी बात का सबूत होगी कि अभी भी मानवी मामलों में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस का न्याय ही एक बड़ी ताक़त है। साथ ही वह इस बात का भी एक और सबूत होगी कि हम मनुष्यों ने यद्यपि अपना रूप तो बदल दिया है पर पशुओं के तरीक़ों को नहीं बदला है।

मैं आशा करता हूँ कि मेरे आलोचकों को अब यह स्पष्ट होगया होगा कि इंग्लैण्ड और फ्रांस के प्रति मेरी सहानुभूति मेरे आवेश या उन्माद के प्रमाद का परिणाम नहीं है। वह तो अहिंसा के उस कभी न सूखनेवाले फव्वारे से निकली है जिसे पिछले पचास सालों से मेरा हृदय पोसता आया है। मैं यह